आजकल वह समय आगयाहै कि, अधिकांश सनातनधर्मावलंबीगण अंग्रेजी शिक्षा और दीक्षाके प्रभावसे सनातनधर्मकी महिमाको नहीं जानते, और क्रमशः लक्ष्य मार्गसे भ्रष्ट होते जातेहैं, परन्तु तुलसीदासजीके इस वाक्यानुसार किः-
“जब जब होय धर्मकी हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी ॥ तब तब प्रभुधर मनुजशरीरा। इरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा ॥”
भारतधर्ममहामंडलका जन्म हुआ कि, जिसके महोपदेशकगणने पूर्वसागर और दक्षिणसागरतक सनातन धर्मके विजयदुन्दुभिको विघोषित किया। जो लोग धर्मके मार्गोको भूलगयेथे उनको सत्य और यथार्थ मार्ग चताया. यह भारतधर्ममहामंडलकाही कार्य था, जिसके द्वारा अंग्रेज, जरमन, इटालियन, अमेरिकन और रशियन लोग सनातनधर्मकी भेडताको स्वीकार करके उसके अनुयायी बननेलगे । भारतधर्ममहामंडल के जन्मदाता महामंत्री श्रीमान् १० दीनदयालुजीकी प्रभावशाली ओजस्विनी वक्तृतासे आज पंजाब, बलूचिस्तान, सिंध, बम्बई, हैदराबादमें सनातनधर्मका डंका बजरहा है । ऐसे अवसरमें यहभी उचित समझागया कि, वेद उपनिषद्, पुराण, मीमांसा, दर्शन व व्याकरणादिक ग्रंथनी मूल और नापाटीकासहित छाप २ कर प्रकाशित किये
जायें, जिससे उनलोगों पर जो संस्कृत नहीं पढ़हैं सनातनमीकी महिमा विदित होजावै कि, हमारे सनातनधर्मके अक्षय भंडारमें कैसे २ बंथरूप लाल भरे पड़हैं अत एव इसकार्यको अचेत समझकर कतिपय विद्वान् लोगंनि ग्रंथोंको संशोधित करके मूल और भाषाटीकासहित प्रकाशित करनेका विचार किया। अब यह वि चार हुआ कि, ऐसा कौनसा परोपकारी उदारपुरुषहै जो अपना धन लगाकर इन ग्रंथोंको छापकर प्रसिद्ध करे. परन्तु घट २ वासी श्यामसुन्दर ब्रजचंदने यह अभि लाषाभी पूर्ण की. पश्चिमोनरमें “मुन्शी नवलकिशोर भेस” लखनऊ, बम्बईमें “श्रीमान् सेठ खेमराज श्रीकृष्णदासजीने इस कार्यमें पूर्ण २ सहायता दी, और सहस्रों ग्रंथोंको भाषाटीकासहित छापकर प्रकाशित किया” जिससे भारतवासी सनातनधर्माबलंबी लोगोंका विशेष उपकार हुआ तथा बराबर होता चलाजाताहै,
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