मनुष्य जीवन का मुख्य लक्ष्य आनन्द की प्राप्ति है। आनन्द का ज्ञान से गहरा सम्बन्ध है। महर्षि मनु ने मनुस्मृति 5.109 में बताया है- “विद्यातपोभ्याम् भूतात्मा, बुद्धिर्ज्ञानेन शुध्यति” अर्थात् “विद्या एवं तप से जीवात्मा पवित्र होती है, और बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है। महर्षि कपिल सांख्य-दर्शन 3.23 में लिखते हैं, की ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं होती, अज्ञानता से बन्धन होता है। महर्षि वेदव्यास ने गीता 4.38 में कहा है- “न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते” अर्थात् “ज्ञान के सदृश पवित्र वस्तु संसार में दूसरी नहीं है।” ज्ञान से मनोगत कालुष्य मिटता है तथा बुद्धि निर्मल होती है। निर्मल बुद्धि से ही मनुष्य सदाचरण में प्रवृत्त होता है।
ज्ञान दो प्रकार के होते हैं:
१) स्वाभाविक (वह ज्ञान जो सदा एकसमान रहता, कभी घटता-बढता नहीं)
२) नैमित्तिक (जो किसी निमित्त से प्राप्त होता है)
बिना नैमित्तिक ज्ञान के मनुष्य की उन्नति नहीं होती, नैमित्तिक ज्ञान की प्राप्ति वेदों एवं ऋषिकृत ग्रन्थों के स्वाध्याय से ही होती है। अवैदिक ग्रन्थों से मिथ्या ज्ञान होता है, जो की मनुष्य के बन्धन का कारण बनता है.
ऋषि-प्रणीत ग्रन्थों को इसीलिए पढना चाहिए, क्योंकि वे पक्षपातरहित, धर्मात्मा, विद्वानों के द्वारा प्रकाशित होते हैं। महर्षि दयानन्द सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं- “महर्षि लोगों का आशय, जहाँ तक हो सके वहाँ तक सुगम और जिसके ग्रहण करने में थोड़ा समय लगे, इस प्रकार का होता है। पक्षपात-पूर्ण लेखकों द्वारा रचित ग्रन्थ अनार्ष-ग्रन्थ कहलाता है, जिसका स्वाध्याय ऐसा है कि जैसे पहाड़ का खोदना और कौड़ियो का लाभ होना। जबकि आर्ष-ग्रन्थों का पढना ऐसा है कि जैसे एक गोता लगाना और बहुमूल्य रत्नों का पाना।”
अतः आर्ष-ग्रन्थों के स्वाध्याय की विशेष महत्ता है।
वेदऋषि का मुख्य उद्देश्य आर्ष-ग्रन्थों का विभिन्न प्रकार से प्रचार-प्रसार करना है। इसके अन्तर्गत आर्ष-पुस्तकों को न्यूनतम सम्भावित मूल्य पर पाठकों को उपलब्ध कराना, आर्ष-पुस्तकों का digitization, संस्कृत-भाषा की निःशुल्क शिक्षा, दुर्लभ ग्रन्थों को प्रकाशित कराना, विद्वानों के लेखों से शंकाओं का निवारण आदि कार्य हैं। इस ईश्वरीय कार्य में आप सभी विद्वानों का तन-मन-धन से सहयोग अपेक्षित है। हमारी योजना निकट भविष्य में वेदों के निःशुल्क वितरण की है, इस हेतु प्रारम्भ में वेदों को न्यूनतम मूल्य पर पाठकों को उपलब्ध कराया जाएगा। वेदों के साथ वेदार्थ में सहायक ग्रन्थ ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका और सत्यार्थ-प्रकाश के वितरण की भी योजना है।
इस वेबसाइट vedrishi.com पर वेदादि आर्ष-ग्रन्थों पर आधारित सामग्रियों को शब्द (Text), चित्र (Picture), श्रव्य (Audio), चलचित्र (Video), प्रदर्शन (Presentation), लेखाचित्र (Infographics) आदि के रूप में प्राप्त किया जा सकता है।
भारत देश जिसका कभी एक गौरवशाली अतीत था, यहां अनगिनत उच्च कोटि के विद्वान – दार्शनिक हुए जिन्होनें इस देश को विश्वगुरू पद पर प्रतिष्ठित किया। भारत के विश्व गुरू बनने का आधार था, वेद और वेदानुकूल ऋषि – प्रणीत ग्रन्थ, तथा उन ग्रन्थों में वर्णित विद्या का यहाँ के निवासियों द्वारा अपने सामान्य जीवन निर्वहन में प्रयोग।
इस कथन में कोई संदेह नही है कि वेदों और ऋषि-प्रणीत ग्रन्थों को निर्मल बुद्धि द्वारा अध्ययन करने पर यह सुस्पष्ट हो जाता है कि वे पक्षपातरहित, तथा ज्ञान प्राप्ति का सर्वोत्तम स्रोत हैं। वर्तमान समय में पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव भारतवर्ष में बढ़ने लगा है और ऐसी परिस्थिति में सामान्यजन तक ज्ञान की यह ज्योति पहुँच पाना दुष्कर हो चला है। व्यक्ति के जीवन को गहरे अर्थों में प्रभावित करने वाले शब्दों के अर्थ की स्पष्टता भी लोगों में नहीं रह गयी है। स्थिति कुछ ऐसी हो चली है कि इस देश के नाम का अर्थ भी देशवासियों से पूछा जाए तो संभवतः बहुत कम लोग इसका अर्थ बता सकेंगे। विदेशी भाषा पर निर्भरता इतनी बढ़ चुकी है कि शुद्ध मातृभाषा का प्रयोग अब असंभव सा हो चला है। ऐसी परिस्थिति में मातृभाषा के संरक्षण के प्रति सजगता समाप्त हो जाना आश्चर्य का विषय नहीं है। कल के विश्व गुरू भारत की ऐसी दुर्दशा हो गयी है कि यहाँ के अधिकांश निवासी केवल मूलभूत आवश्यकता पूर्ति में उलझकर रह गया है और विदेशी आधुनिकता में पड़कर अपना गौरवशाली इतिहास भूल रहा है।
गुरूकुलों से विभिन्न शास्त्रों का अध्ययन करके भारत के अनेकों महानगरों में प्रवास के दौरान नगरीय जीवन में संस्कृति और संस्कारों तथा शास्त्रों के प्रति उपेक्षा को देखते हुए एक विद्यार्थी का मन अतीव पीड़ा से भर गया।
अपने पूर्वकालीन अध्ययन के आधार पर उस विद्यार्थी ने अनुभव किया कि देश में पुनः चारित्रिक और सांस्कृतिक स्तर उन्नत करना हो तो पुनः अपनी ज्ञान सम्पदा की ओर लोगों को वापस लाना होगा। इस ज्ञान की ज्योति को प्रज्वलित करके जन-जन तक पहुँचाने का कोई विकल्प प्रस्तुत करना होगा।
यह विकल्प सत्साहित्य के अतिरिक्त और क्या हो सकता था? अपौरुषेय वेद और ऋषियों के ग्रंथ तथा इन्हीं के अनुकूल कई विद्वान लेखकों के साहित्य जिससे इन ग्रंथों का मन्तव्य स्पष्ट हो, व्यक्ति के सांस्कृतिक और चारित्रिक निर्माण के लिए एक पथप्रदर्शक सिद्ध हो सकते थे। किन्तु आज विडंबना यह है कि व्यापारिक लाभ प्राप्ति के लिए, असैद्धान्तिक, प्रक्षिप्त पुस्तकों का प्रकाशन हो रहा है। आधुनिकता की अंधी दौड़ में जनसामान्य की रूचि भी परिवर्तित हो चली है और उन्हे निम्नस्तरीय साहित्य में ही रस प्राप्त होने लगा है। निम्नस्तरीय पुस्तकें समाज का उपकार करने के स्थान पर अपकार कर रही हैं। एक अच्छा साहित्य एक मित्र के समान होता है वहीं असैद्धान्तिक पुस्तकें शत्रु के समान होती है।
Rishi Dev
अध्यक्ष
जब पूरे भारतवर्ष में विभिन्न प्रकाशकों द्वारा भारत के महत्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थों का प्रकाशन होता है तो इन ग्रन्थों में कौन सा ग्रन्थ शुद्ध है वेद सम्मत है इसे ज्ञात करना एक कठिन कार्य हो जाता है। इस कार्य को तो गुरूकुल से शिक्षा प्राप्त तथा वैदिक साहित्य में गहरी रूचि रखने वाला एक विद्वान ही कर सकता था। वैदिक तथा वेद सम्मत पुस्तकों की प्राप्ति किसी एक स्थान से हो सके इस उद्देश्य को आगे रखकर वैदिक प्राचीन ग्रन्थों के एक प्रामाणिक केन्द्र वेदऋषि प्रकल्प की स्थापना की गयी। इस प्रकल्प द्वारा भारतवर्ष के उच्च कोटि के विद्वानों की सम्मति और सुझाव के आलोक में शुद्ध ग्रन्थों का सूक्ष्मतापूर्वक परिक्षण और चयन किया जाता है।
वेद सम्मत ज्ञान का प्रकाश फैलाने के लिए भारतवर्ष के विभिन्न प्रकाशकों द्वारा मुद्रित प्रमुख भारतीय आर्ष ग्रन्थों और विभिन्न लेखकों द्वारा रचित वेद सम्मत पुस्तकों को प्रचारित किया जाता है, जिससे लोगों को इहलौकिक और परलौकिक कल्याण करने वाला विशुद्ध ज्ञान प्राप्त हो सके। लोगों को अध्ययन करते समय ग्रन्थों की प्रामाणिकता का संदेह न रहे। वर्तमान में जन-जन तक प्रामाणिक साहित्य को पहुँचाना इस प्रकल्प का एकमात्र उद्देश्य है।
आज वेदऋषि प्रकल्प द्वारा भारतवर्ष के लगभग 90 प्रकाशकों की वेद मान्यतानुकूल बहुमूल्य पुस्तकों को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया जा रहा है। वेद-ऋषि प्रकल्प की स्थापना के आरंभ से ही इस प्रकल्प को वैदिक साहित्य प्रेमियों द्वारा अपार स्नेह प्राप्त हुआ है। Vedrishi.com आज पूरे भारतवर्ष ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में वैदिक साहित्यप्रेमियों तक प्रामाणिक ग्रन्थ और सत्साहित्य पहुँचाने का एक माध्यम बन चुका है। वेद ऋषि प्रकल्प वैदिक ज्ञान प्रचार हेतू कई अन्य उद्देश्यों को मन में संजोए बैठा है। सत्साहित्य प्रेमीगण इस महती कार्य में यदि अपना कोई योगदान करना चाहते हैं तो उनसे अनुरोध है कि वे हमारी वेबसाईट पर आकर सत्साहित्य क्रय करें तथा अपने इष्ट मित्रों और संबंधियों को यहाँ से सत्साहित्य क्रय करने के लिए प्रेरित करें, जिससे हम सभी का पवित्र उद्देश्य देश की प्राचीन ज्ञान सम्पदा का घर–घर में पहुँचने का पूरा हो सके।
Subscribe to Newsletter
By clicking subscribe, I acknowledge that I want to subscribe for email from Vedrishi.com