पुस्तक का नाम – 1857 का स्वातंत्र्य समर
लेखक का नाम – विनायक दामोदर सावरकर
वीर सावरकर रचित 1857 का स्वातंत्र्य समर एक इतिहास पुस्तक है। जिसे प्रकाशन से पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ है। इस पुस्तक को ही यह प्रथम गौरव प्राप्त है कि सन 1909 में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से 1947 में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लम्बे कालखंड़ में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रान्तिकारियों की गीता बन गई है।
पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे –
1) सन् 1857 का यथार्थ क्या है?
2) क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था?
3) क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पडे़ थे, या वे किसी बडे़ लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था?
4) योजना का स्वरूप क्या था?
5) क्या सन् 1857 एक बीता हुआ बन्द अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा?
6) भारत की भावी पीढियों के लिए 1857 का संदेश क्या है?
7) उन्हीं ज्वलन्त प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रन्थ 1857 का स्वातंत्र्य समर ।
इस पुस्तक के प्रभाव से जो क्रांतिकारी प्रभाव हुए, वे निम्न प्रकार है –
सावरकर जी द्वारा लिखे इतिहास की इस महान रचना ने सन् 1914 के गदर आंदोलन से 1943-45 की आजाद हिंद फौज तक कम-से-कम दो पीढियों को स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की प्रेरणा दी। बंबई की ‘फ्री हिन्दुस्तान’ साप्ताहिक पत्रिका में मई 1946 में ‘सावरकर विशेषांक’ प्रकाशित किया, जिसमें के.एफ. नरीमन ने अपने लेख में स्वीकार किया कि “आजाद हिंद फौज की कल्पना और विशेषकर रानी झाँसी रेजीमेंट के नामकरण की मूल प्रेरणा सन 1857 की महान क्रांति पर वीर सावरकर की जब्तशुदा रचना में ही दिखाई देती है।” उसी अंक के वेजवाडा की गोष्ठी नामक पत्रिका के संपादक जी.वी. सुब्बाराव ने लिखा कि “यदि सावरकर ने 1857 और 1943 के बीच हस्तक्षेप न किया होता तो मुझे विश्वास है कि आजाद हिन्द फौज के ताजा प्रयासों को कि ‘गदर’ शब्द का अर्थ ही बदल गया। यहां तक कि अब लाँर्ड वावेल भी एक मामूली गदर कहने का साहस नहीं कर सकता। इस परिवर्तन का पूरा श्रेय सावरकर और केवल सावरकर को ही जाता है।”
प्रत्येक देशभक्ति भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!
Reviews
There are no reviews yet.