आचार्य दुर्ग की निरुक्तवृत्ति
वेद के रहस्य को स्पष्ट करने के लिए आचार्य यास्क का निरुक्त एक महत्वपूर्ण कड़ी है| आज निरुक्त का महत्व एक भिन्न रूप में सामने आया है| निरुक्त की उपयोगिता आज केवल मंत्रार्थ को स्पष्ट करने के लिए नहीं है, अपितु भाषा के अनसुलझे रहस्यों को सुलझाने के लिए भी है|
आचार्य यास्क की यह व्याख्या कितनी महत्वपूर्ण है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है की इसको समझने के लिए इसके निर्माण के पश्चात से ही व्याख्याओं का क्रम प्रारम्भ हो गया और वह आज तक चला आ रहा है| इसी क्रम में आचार्य दुर्ग हमारे समक्ष आते है | स्कन्दस्वामी प्रभुति जितनी आज निरुक्तकी वृत्तियाँउपलब्ध हैं, उनमें विद्वता तथा व्याख्या करने की स्पष्टता को ध्यान में रखते हुए दुर्गवृत्ति उपलब्ध न होती तो निरुक्त को पूर्णतया समझ पाना संभव नहीं था|
प्रस्तुत प्रबंध को पुरोवाक् और विषय-प्रवेश के अतिरिक्त एकादश भागों में विभाजित किया गया है| प्रथम अध्याय ‘नाम तथा आख्यात’ से सम्बंधित है| इसके गठन के समय इस बात को विशेष रूप से ध्यान रखा गया है की भाव का संपूर्ण अध्ययन इसमें समाहित हो जाए| द्वितीय अध्याय का नाम ‘उपसर्ग-निपात प्रकरण’ है| इसमें उपसर्ग तथा निपात के अतिरिक्त नित्यानित्य्त्व के सम्बन्ध में भी विचार किया गया है| तृतीय अध्याय का नाम ‘निर्वचन-सिद्धांत’ है|
चतुर्थ अध्याय का नाम ‘नैघंटुक-प्रकरण’ है| इसमें निघंट्ट कोष के प्रारंभिक तीन अध्यायों के शब्दों का निर्वचन प्रस्तुत किया है| कुछ शब्द ऐसे भी हैं, जिनकानिर्वचन यास्क ने प्रस्तुत नहीं किया है, परन्तुउनमें से कतिपय नामपदों का निर्वचन दुर्ग प्रस्तुतकरतेहैं| पञ्चम अध्याय का नाम ‘एकपदिक-प्रकरण’ है| इसमें निघंटु के चतुर्थ अध्याय के निरुक्तकेचतुर्थ, पञ्चम, तथा षष्ठ अध्यायों में वर्णित नामपदोंका विस्तृतअध्ययन प्रस्तुत किया गया है| षष्ठ अध्याय का नाम ‘दैवत-प्रकरण’ है| इस प्रकरण में देवता के विषय से सम्बंधित सैद्धांतिक तथ्यों का विवेचन किया गया है| सप्तम अध्याय का नाम ‘पृथिवीस्थानी देवताप्रकरण’ है|
इसमें निरुक्त के सप्तम, अष्टम तथा नवमअध्यायोंमें वर्णित पृथिवीस्थानी देवतापदों का निर्वाचन तथा स्वरुप स्पष्टकरने का प्रयास किया गया है| अष्टम अध्याय का नाम ‘अन्तरिक्षस्थानी प्रकरण’ है| इसमें निरुक्त के दशम तथा एकादशअध्यायों में वर्णित अन्तरिक्षस्थानी देवतापदों का अध्ययन किया गया है| नवमअध्याय का नाम ‘ द्युस्थानी प्रकरण’ है| इसमें निरुक्त के १२वें अध्याय में वर्णित द्युस्थानी देवतापदों का विवेचन किया गया है| दशम अध्याय का नाम ‘आचार्य दुर्ग कीवेद-व्याख्या-शैली’ है| इस अध्याय में ‘मंत्र अनर्थक या सार्थक’ इस अध्ययन के साथ-साथ दुर्ग की वेद-व्याख्या-शैली की विशेषताओं तथा मान्यताओं को उद्घाटित करने का प्रयास किया गया है| एकादश अध्याय का नाम ‘आचार्य दुर्ग का योगदान’ है| इसमें गत दश अध्यायों में स्थान-स्थान पर दुर्ग के कर्तित्व में उपलब्ध विशिष्टताओं का सार प्रस्तुत किया गया है|
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