Vedrishi

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ऐतरेयारण्यकम्

Aitareyaranyakam

700.00

Subject : Brahman Grantha
Edition : 2022
Publishing Year : 2022
SKU # : 36891-VG00-0H
ISBN : 9788121803441
Packing : Hard Cover
Pages : 426
Dimensions : 14X22X2
Weight : 696
Binding : Hard Cover
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वेद भारतीय संस्कृति और भारतीय जीवनदर्शन के मूल उत्स है। यद्यपि यह संस्कृति और जीवनदर्शन सनातन है तथापि उनका निदर्शन हमें सर्वप्रथम वेदों से प्राप्त होता है। इसलिए भारतीय संस्कृति और जीवन-दर्शन के गूढ़ तथ्यों के ज्ञान के लिए वेदाध्ययन अपरिहार्य हैं। वेद में अलौकिक रहस्यात्मक तथा लौकिक जीवन से सम्बन्धित ज्ञान भरे पड़े हैं। पारलौकिक और लौकिक जीवन से सम्बन्धित ऐसा कोई भी ज्ञान नहीं है जो वेदवाङ्‌मय में उपलब्ध न हो। इस प्रकार वेद सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान के भाण्डागार हैं। वेद के चार विभाग हैं- संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् । संहिता मन्त्रों का सङ्कलन है। ब्राह्मणग्रन्थ विभिन्न दृष्टियों से मन्त्रों के व्याख्याग्रन्थ हैं, जो प्रायः कर्मकाण्ड प्रधान हैं। उपनिषद् ग्रन्थों में पारलौकिक परमात्मा से सम्बन्धित विविध प्रकार के तथ्यों का विवेचन किया गया है। आरण्यकग्रन्थ ब्राह्मण और उपनिषद् ग्रन्थों के बीच कड़ी हैं जिनमें कर्मकाण्ड का परमात्मज्ञान विषयक तथ्यों से सामञ्जस्य स्थापित किया गया है।

सम्प्रति ऋग्वेद के दो आरण्यकग्रन्थ उपलब्ध हैं- ऐतरेयारण्यक और शाङ्खायनारण्यक । ऐतरेयारण्यक ऐतरेयब्राह्मण का परिशिष्ट भाग या पूरक है। इस पर सायण का भाष्य भी है। सायणभाष्य के साथ इसका प्रकाशन आनन्दाश्रमसंस्कृतग्रन्थावली पूना से हुआ है। यद्यपि यह संस्करण प्रामाणिक एवं शुद्ध है और सायणभाष्य के साथ प्रकाशित होने के कारण संस्कृतभाषा के माध्यम से अध्ययन करने वाले वेदाध्यायियों के लिए अत्यन्त उपयोगी है तथापि हिन्दी भाषा के माध्यम से अध्ययन करने वाले वेदाध्येताओं के लिए दुरूह है। हिन्दी भाषा के माध्यम से अध्ययन करने वाले वेदाध्येताओं के इसी कठिनाई को ध्यान में रखकर इस संस्करण को तैयार किया गया है। इस संस्करण में सायणभाष्य होने के कारण संस्कृतभाषा के माध्यम से अध्ययन करने वाले तथा साथ में हिन्दी होने के कारण हिन्दी भाषा के माध्यम से अध्ययन करने वाले वेदाध्यायियों के लिए यह संस्करण महदुपयोगी होगा-ऐसी आशा है।

इस संस्करण में आरण्यक के पाठ के साथ उसकी हिन्दी दी गयी है। हिन्दी के बाद उसका सायणभाष्य दिया गया है। स्थल-स्थल पर विमर्श दिया गया है जिसमें मूल में प्रोक्त तथ्यों को स्पष्ट किया गया है। इसके साथ ही मूल में सङ्केतित ऋग्वेद के मन्त्रों को हिन्दी के साथ दिया गया है। ऋग्वेद के सङ्केतित मन्त्रों का उद्धरण भी दे दिया गया है जिससे पाठक कठिनाई होने पर उन्हें संहिता में देख सकें। ग्रन्थ के प्रारम्भ में एक विस्तृत भूमिका दी गयी है

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