नाम – अक्षर विज्ञान
लेखक – रघुनन्दन शर्मा
हम अपने भावों, कथनों को भाषा के रूप में प्रकट करते हैं तथा भाषा के अक्षरों को कागज पर लिपि रूप में प्रकट करते हैं। भाषा के सम्बन्ध में काफी उहापोह विद्वानों द्वारा होती रही है। हमारे सभी ऋषि मुनियों तथा यहूदी, फ़ारसी, मुस्लिम आदि का मानना है कि भाषा प्रारम्भ में ईश्वर द्वारा दी गयी अर्थात् ज्ञान का मुख्य स्त्रोत ईश्वर है, वहीं अनेको विद्वानों, कई प्रसिद्ध साधूओं, विकासवादियों का मानना है कि भाषा धीरे-धीरे उन्नत हुई तथा प्रारम्भ में मनुष्य ने पशुओं और पाषाणों, बादलों की गर्जना को ग्रहण कर वाक्य व्यवहार से भाषा रचना की, इनमें से कौनसा वाद सत्य है, कौनसा असत्य? इसका निर्णय इस पुस्तक में किया गया है तथा यह स्थापना की है कि भाषा ईश्वर प्रदत्त ही है।
ईश्वर ने वैदिक वाक् द्वारा मनुष्यों को भाषा दी, उसी से कालान्तर में संस्कृत, जेंद, प्राकृत, पाली, फ़ारसी, अरबी, लेटिन, अंग्रेजी आदि भाषाएं बनी। लेखक ने विकासवाद का समुचित खंडन किया है। लिपियों के क्रम और उनके वर्तमान रूप पर भी स्पष्ट प्रकाश डाला है। शब्द और अर्थ के आपसी सम्बन्ध की स्थापना लेखक द्वारा की गयी है।
यह पुस्तक भाषा सम्बन्धित शोध विचार करने वालो के लिए अतीव उपयोगी है।
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