अन्धश्रद्धा और अन्धविश्वासों ने आज के पढ़े-लिखे लोगों को भी हंसी के पात्र बना दिया है। बिल्ली रास्ता काट जाए तो घर को लौट जाते हैं, कोई व्यक्ति छींक दे तो अपशकुन मान लेते हैं, अर्थी देखकर समझते हैं कि काम अवश्य बिगड़ेगा, बच्चों को काले टीके लगाते हैं कि नजर न लगे। वाहनों के पीछे टूटे जूते लटकाते हैं कि दुर्घटना से बचे रहे. मनीप्लांट चुराते हैं ताकि घर में धन की वर्षा हो. रात को अपने-अपने पत्थर के भगवानों को तालाबंद रखते हैं कि कोई उनके वस्त्र न उतार ले जाये। कितना दुर्बल समझ लिया है भगवान को! जो प्रभु अपने लंगोट की रक्षा नहीं कर सकता, वह भक्तों की रक्षा कैसे करेगा।
परमात्मा ने सृष्टि के प्रारम्भ में वेदों द्वारा ज्ञान का भंडार दिया, हमने नादानी में वेदों से ही आखें फेर ली। यदि वहमों, पाखण्डों, भ्रान्तियों और भेड़चाल की दलदल से बचना है तो एक बार पुस्तक को अवश्य पढ़े । इस पुस्तक को पढ़ने से बच्चों को उँचे सस्कार मिलेंगे, बड़ों को मोक्ष की राह मिलेगी।
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