अथर्ववेदभाष्यम्
भाष्यकार – प्रो. विश्वनाथ विद्यालङ्कार जी
अथर्ववेद में ज्ञान, कर्म एवं उपासना तीनों का सम्मिश्रण है। इसमें जहाँ प्राकृतिक रहस्यों का उद्घाटन है, वहाँ गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों का भी विवेचन है। यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के साधनों की कुञ्जी है।
अथर्ववेद को ब्रह्मवेद, अथर्वाङ्गिरसः, छन्दवेद, चित्तवेद, अमृतवेद और आत्मवेद भी कहते हैं। अथर्ववेद में 20 काण्ड, 111 अनुवाक, 731 सूक्त और 5977 मन्त्र है।
अथर्ववेद में शिल्प विद्या, विष चिकित्सा विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, रश्मि विज्ञान, युद्धादि सम्बन्धित विज्ञान, अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र आदि अनेकों विद्याओं का सम्मिश्रण है।
प्रस्तुत वेदभाष्य परोपकारिणी सभा, अजमेर से प्रकाशित है। इसके भाष्यकार प्रो. विश्वनाथ विद्यालङ्कार है। यह भाष्य तीन भागों में प्रकाशित है।
इस भाष्य की निम्न विशेषताएँ है –
1) इस संस्करण में भाष्यकार के आश्रय को स्पष्ट करने के लिए उचित अध्याहार किया गया है।
2) उद्धरण के मूल-ग्रन्थ को देखकर उद्धरण के पाठ में आवश्यकतानुसार संशोधन किये गये हैं तथा उद्धरण के पते ठीक दिये गये हैं।
3) मन्त्र, ऋषि, देवता तथा छन्द का पाठ अथर्ववेद मन्त्रसंहिता, वैदिक पुस्तकालय, परोपकारिणी सभा, अदमेर वाला लिया गया है।
इन तीनों भागों की विषयसूची निम्न प्रकार है –
प्रथम भाग –
इस भाग में प्रथम काण्ड से सप्तम काण्ड तक का भाष्य है। इन सभी काण्डों में निम्न विषयों पर प्रकाश डाला है –
प्रथम काण्ड – इस काण्ड में जीवात्मा, मूत्रकृच्छ्र रोग और मुञ्जादि द्वारा रोगनिवृत्ति, लोहशलाका द्वारा वस्तिभेदन, जलचिकित्सा और दृष्टिशक्ति के विषयों पर प्रकाश डाला है।
द्वितीय काण्ड – इस काण्ड में परमेश्वर के अनेक नामों, नमस्ते के प्रयोग, अतिसार, अतिमूत्र, व्रणपाक आदि के विविध औषध, प्रधानमन्त्री के लिए निर्वाचन प्रक्रिया, ब्रहमचर्य का महत्त्व, रोग-कीट के विनाश का उपाय, पशुशाला के रख-रखाव, गृहस्थाश्रम, सूर्य किरणों के द्वारा रोगनाशन, अपरिग्रह आदि विषयों का उल्लेख किया है।
तृतीय काण्ड – इस काण्ड में शत्रुसेना का विमोहन और उसके उपाय, अप्वा अस्त्र, तामसास्त्र, एकराट् और सेनाध्यक्ष के कर्तव्य, राष्ट्र के भरण-पोषण के उपाय, संवत्सर का स्वरूप, शालानिर्माण, वायुयानों के मार्ग, कृषि विज्ञान, वन्ध्यात्त्व चिकित्सा, यम और नियम, आदर्श गृहस्थ आदि विषयों पर विवेचना की गई है।
चतुर्थ काण्ड – इस काण्ड में सृष्टि विज्ञान, सत्य का महत्त्व, अंहिसा का महत्त्व, ईश्वरोपासना, शत्रु और हिंसकादि जानवरों से बचाव के उपायों, वनस्पति विज्ञान, गौ के परिपालन का उपदेश, शङ्ख भस्म के प्रयोग, शरीर विज्ञान, मेघ और जलविज्ञान, मानसून वायु, रोगकीटाणुओं के नाश के उपाय आदि का वर्णन है।
पञ्चम काण्ड – इस काण्ड में प्रकाश विज्ञान, मनुष्य की सात मर्यादा, ग्रह-नक्षत्रों के भ्रमण की कक्षा, सैन्य शिक्षा, नौका-विज्ञान, प्राणविद्या, सर्प विष चिकित्सा, कर्मशक्ति का महत्त्व, पञ्चमहायज्ञ का वर्णन, ज्वर मुक्ति के उपाय, ब्रह्मचर्य का वर्णन, प्रधानमन्त्री के कर्तव्य, अङ्गों के ज्वरों को खत्म करने का उपाय, राजा के कर्तव्य आदि विषयों का उल्लेख किया है।
षष्ठं काण्ड – इस काण्ड में मेघीय विद्युत, कृषि और अग्निहोत्र, प्रलय अवस्था, जलचिकित्सा, राष्ट्राधिकारियों के कर्त्तव्य, ध्यान का महत्त्व, मानसिक पापों के निवारण के उपाय, विवाह कर्म, कवच निर्माण, पशुपालन, सप्त ऋषियों का स्वरूप, वृक्षों में जीव, सूर्य रश्मियाँ, मुण्डन , व्यभिचारी को दण्ड, कर्णभेद आदि विषयों का वर्णन है।
सप्तम काण्ड – इस काण्ड में तृतीय तथा तुरीय ब्रह्म, अथर्वा पिता, साध्याः देवः, प्रकृति और परमेश्वर, दिति, भय और श्रेय मार्ग, निरामिश्र भोजन, गृहजीवन, शल्य चिकित्सा द्वारा गुर्दों का सही स्थापन, दुः स्वपनों का परिहार, ब्रह्मचारियों के कर्त्तव्य आदि का वर्णन है।
इस काण्ड के 30वें सूक्त में शल्य चिकित्सा का वर्णन है।
द्वितीय भाग –
इस भाग में काण्ड 8 से 13 तक के मन्त्रों की व्याख्या है। इसके विषयों का विवरण निम्न प्रकार है –
अष्टम काण्ड – इस काण्ड में उपनीत ब्रह्मचारी का वर्णन, ज्ञानोपदेश करने का परामर्श, बोध और प्रतिबोध, ब्रह्मचारी का भोजन, गौ हत्यारे का वेधन, शास्त्रास्त्र, दुष्टों को विविध दण्ड विधान, गुप्तचर स्त्रियाँ, कीटाणुओं के प्रकार, स्वापनिक दोषों का विनाश, औषधियों की भस्में, विमानों द्वारा युद्ध, गौ के गुण, कूट प्रयोग, लोकलोकान्तरवासी देव तथा मनुष्यों का वर्णन, नील और लोहित रश्मियों द्वारा शत्रु पर विजय, सामाजिक व्यवस्था, शत्रु का हनन आदि विषयों का उल्लेख है।
नवम काण्ड – इस काण्ड में भ्रमर, चमगादड, पक्षियों के आधिदैविक स्वरूप-प्रदर्शन द्युलोक का चित्र, शाला निर्माण, अजन्मा जीव, अतिथियज्ञ, यक्ष्मा रोग, गो का वर्णन आदि विषयों का सङ्कलन है।
दशम काण्ड – इस काण्ड में कृत्या प्रयोग, मनुष्यों के भिन्न-भिन्न अङ्ग, हृदय-मस्तिष्क, रोग-निवारण वनस्पति, सर्पों के प्रकार, स्कम्भ परमात्मा का वर्णन आदि विषयों का उल्लेख किया है।
एकादश काण्ड – इस काण्ड में ब्रह्मौदन, प्राण के विविध स्वरूप, ब्रह्मचर्य, पापमोचन, शरीर रचना और नाना अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन है।
द्वादश काण्ड – इस काण्ड में भूमि, यक्ष्मनाशन, गृह्य-कर्त्तव्य, वशा का स्वरूप पर प्रकाश डाला है।
त्रयोदश काण्ड – इस काण्ड में राजा, आदित्य, परमेश्वर के कार्यों का वर्णन है।
तृतीय भाग –
इस भाग में अथर्ववेद का भाष्य काण्ड 14 से 20 (समाप्ति) तक है। इस भाग के काण्डों की विषय वस्तु निम्न प्रकार है –
चतुर्दश काण्ड – इस काण्ड में आदर्श विवाह, सोमपान, ब्रह्मचारिणी की प्रशंसा, गर्भादान परिशोधन, पति और पत्नि के गुण, आश्रम व्यवस्था, अग्निहोत्र, प्रातः भ्रमण के लाभ, अभिवादन में नमस्ते, परमेश्वर के प्रति समर्पण, असामयिक मृत्यु से बचाव, शुद्धि आदि विषयों का वर्णन है।
पञ्चदश काण्ड – इस काण्ड में आध्यात्मिक बल, ऋतुओं, वनस्पतियों का वर्णन, संवत्सर आदि का उपदेश किया है।
षोडश काण्ड – इस काण्ड में विविध अग्नियों का वर्णन, बल एवं प्राण शक्ति, इन्द्रियों की स्वास्थ्यता, वीर्य रक्षा, मधुर वाणी, राग द्वेष का त्याग, सुष्वप्न, अपराधी को दण्ड आदि अनेकों विषयों का उल्लेख है।
सप्तदश काण्ड – इस काण्ड में ईश्वर की स्तुति, सत्कार्यवाद, द्यूलोक का वर्णन, विविध ग्रहों का उल्लेख, प्राणों का वर्णन प्राप्त होता है।
अष्टादश काण्ड – इस काण्ड में यम और यमी सूक्त है। यम और यमी के अनेक अर्थ भाष्यकारों ने लिये हैं जैसे – दिन और रात, द्यूलोक और पृथिवी इत्यादि। इन उदाहरणों द्वारा उपदेश किया है कि समान गोत्र और परिवार में भाई-बहन का विवाह विज्ञान के विरूद्ध (18.1.2), वैदिक प्रथा के विरूद्ध (18.1.4) सत्य के विरूद्ध (18.1.6) और पापकर्म (18.1.14) है।
एकोनविंश काण्ड – इस काण्ड में नक्षत्र विज्ञान, खगोलीय उल्लेखों के अन्तर्गत उल्का, पुच्छल तारे, धूर्मकेतु आदि का वर्णन है। इसमें प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूचाल का वर्णन है। देवों के स्वरूप पर प्रकाश डाला है।
विंश काण्ड – इस काण्ड में भक्ति रस, सन्तानों का पालन पोषण, उपासना, मेघ जनित विद्युत, योग साधना, सौर रश्मियाँ, युद्ध विद्या, यक्ष्म नाशन, राष्ट्र आदि विषयों का वर्णन है।
वेदों के विज्ञान, ज्ञान और उपदेशों को अथर्ववेद के अध्ययन द्वारा भलिभाँति समझा जा सकता है, इस वेद में अनेकों रहस्यमयी विद्याएँ है, इसलिए इस वेद का अवश्य ही अध्ययन करना चाहिए।
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