भारत में औषधीय पौधों की जानकारी वैदिक कल से ही परपरागत अक्षुण्ण चली आई हैं l अथर्ववेद मुख्या रूप से आयुर्वेद का सबसे प्राचीन उद्गम स्त्रोत है l भारत में ऋषि मुनि प्रायः जंगलों में स्थापित आश्रमों व गुरुकुलों में ही निवास करते थे और वहां रहकर जड़ी बूटियों का अनुसन्धान व उपयोग निरंतर करते रहते थे l इसमें इनके सहभागी होते थे पशु चराने वाले ग्वाले l ये जगह-जगह के ताज़ी वनोषधियों को एकत्र करते थे और इनसे निर्मित औषधियां से जन-जन की चिकित्सा की जाती थी l इनका प्रभाव भी चमत्कारी होता था क्योंकि इन्हें शुद्ध एवं सम्यक रूपेण पहचान कर ग्रहण किया जाता था कालांतर में आयुर्वेद का विकास व परिवर्धन करने वाले मनीषी धन्वन्तरी, चरक,सुश्रुत आदि अनेक महापुरुषों के पुण्य प्रयास से जीवन विज्ञान की यह विद्या विश्व की प्रथम सुव्यवस्थित चिकित्सा पद्धति के रूप में अवस्थित होकर शीघ्र ही प्रगति शिखर पर पहुँच गई l उस समय अन्य कोई भी चिकित्सा पद्धति इसकी प्रतिस्पर्धा में नहीं होने का अनुमान सुगमता से होता है महर्षि सुश्रुत द्वारा सम्पादित शल्य कर्म एवं शल्य चिकित्सा अन्य कई ऐसे उल्लेख वेदों में मिलते है जिससे ज्ञात होता है कि कृत्रिम अंग व्यवस्था उस समय से प्रचलित थी l भारत से यह चिकित्सा पद्धति पश्चिम में यवन देशों चीन, तिब्बत, श्रीलंका, बर्मा (म्यांमार) आदि देशों में अपनायी गयी तथा कल और परिस्थिति से अनुसार इसमें परिवर्तन परिवर्धन हुए और नयी चिकित्सा पद्धति का प्रचार प्रसार हुआ l
भारत में आयुर्वेद चिकित्सा का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि यवन और अंग्रेज शासन में भी लोग इसमें विशवास खो नहीं सकें जबकि शासन की ओर से इस पद्धति को नकारात्मक दृष्टि से ही संघर्षरत रहना पड़ा l भारत के सुदूरवर्ती ग्रामीण अंचल में तो लोग केवल जड़ी बूटियों पर ही मुख्यतः आश्रित रहें उन्हें यूनानी व एलोपेथिक चिकित्सा पद्धति का लाभ प्राप्त होना संभव नहीं हो सका क्योंकि यह ग्रामीण अंचल में कम प्रसारित हो पायें आज भी भारत के ग्रामीण जन मानस पटल पर इन जड़ी बूटियों में ही दृढ विश्वास स्पष्ट देखने में आता हैं l वंशपरंपरागत जड़ी बूटी चिकित्सा अनुभवों का विशाल भंडार देश के ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में अभी भी पाया जाता हैं लेकिन इसे सुरक्षित करने का उपाय अभी भी संतोषजनक नहीं हैं परन्तु ऐसा प्रतीत हो रहा है कि साधारण जनता भी एलोपेथिक चिकित्सा से पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं l किसी बीमारी की चिकित्सा के लिए जो दवाइयां खाई जाती है उनसे आंशिक लाभ तो हो जाता हैं किन्तु एक अन्य बीमारी का उदय ही जाता हैं जड़ी-बूटियों से इस प्रकार के दुष्परिणाम नहीं होते हैं l इसके अतिरिक्त बिमारियों के इलाज का भी खर्चा बढ़ रहां हैं जबकि जड़ी-बूटी चिकित्सा में बहुत कम व्यय में चिकित्सा हो जाती हैं साधारण रोगों जैसे –सर्दी,जुकाम, खांसी, पेट दर्द, सर दर्द, चर्म रोग आदि में आस पास होने वाले पेड़ पौधों व जड़ी-बूटियों से अतिशीघ्र लाभ हो जाता हैं और खर्च भी कम होता हैं l ऐसी परिस्तिथि में जड़ी-बूटी की जानकारी का महत्व और अधिक हो जाता हैं
“आयुर्वेद जड़ी-बूटी रहस्य” , में हमारी आस पास पाए जाने वाले पौधों के औषधीय गुणों की जानकारी सरल व सुगम ढंग से प्रस्तुत की गई हैं l इनके उपयोग के सरल तरीके भी साथ में दिए गए हैं जिन्हें रोगानुसार किसी योग्य चिकित्सक की सलाह से उपयोग सघ लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं l
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