पुस्तक का नाम – बीजगणितम्
लेखक का नाम – दैवज्ञ पं. देवचन्द्र झा
ज्यौतिष शास्त्र पढ़ने वालों के लिए बीजगणित कितना उपयोगी है यह ज्यौतिषज्ञ के लिए अविदित नहीं। विना बीजगणित के ज्योतिष पढ़ना निर्थक है ऐसा ग्रन्थकार ने स्वयं अपने सिद्धान्तग्रन्थ के आरम्भ में लिखा है –
“द्विविधगणितमुक्तं व्यक्तमव्यक्तयुक्तं
तदवगमननिष्ठः शब्दशास्त्रेपटिष्ठः।
यदि भवति तदेदं ज्यौतिषं भूरिभेदं –
प्रपठितुमधिकारी सोऽन्यथा नामधारी।।
कहकर यह स्पष्ट कर दिया है कि बीजगणित के पूर्णज्ञान के विना ज्यौतिष शास्त्र पढ़ने का अधिकार ही नहीं है।
इस ग्रन्थ की रचना पूर्व विद्वानों जैसे कि श्रीधर, ब्रह्मगुप्त, पद्यनाभ द्वारा रचित ग्रन्थों से सार लेकर की गई है। ऐसा स्वयं ग्रन्थकार ने स्वीकार किया है –
“बीजानि यस्मादतिविस्तृतानि।
आदाय तत्सारमकारि नूनं
सद्युक्तियुक्तं लघु शिष्यतुष्ट्यै।।”
भास्करीय बीजगणित पर कई प्राचीन एवं नवीन टीकाएँ भी है। किसी में पाश्चात्य गणित की ही भरमार तो किसी में निरर्थक टीकाओं के सम्मिश्रण से उसे बोझिल बना दिया गया है।
प्रस्तुत टीका सविमर्श सुधा के द्वारा इस ग्रन्थ को अत्याधुनिक बनाने का प्रयास किया गया है। भास्करीय बीजगणित के किन – किन पक्तियों से कैसे गुणावयव, महत्तमसमापवर्तक अनिश्चित समीकरण आदि जैसे विषय निकलते, इन बातों को अनेक उदाहरण तथा सोत्तर प्रश्नों के द्वारा स्पष्ट किया गया है। इस समस्त बीजगणित के पूर्णतः अध्ययन से छात्रों को अलग से किसी बीजगणित की आवश्यकता नहीं होगी।
आशा है कि इस ग्रन्थ के अध्ययन से शोधार्थी और छात्र अवश्य ही लाभान्वित होंगे।
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