पुस्तक का नाम – भारतीय सांस्कृतिक चिंतन
लेखक का नाम – प्रशांत वेदालंकार साहित्य
महर्षि दयानन्द एक धार्मिक सुधारवादी के साथ – साथ समाजोद्धारक भी थे। उन्होनें आर्ष ग्रंथों और वेदों के उद्धार के लिए उन्होने अनेकों कार्य किये किन्तु समाज में विद्यमान कुरुतियों और अंधविश्वासों का भी विरोध किया। उन्होने समाज को एक मार्गदर्शन प्रदान किया तथा भारत की प्राचीन सांस्कृतिक आधार स्तम्भ वेदों से परिचित करवाया। उन्होने संस्कृत के अध्ययन और अध्यापन पर भी विशेष बल दिया। अतः हम कह सकते हैं कि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी धार्मिक और समाजिक दोनों ही क्षेत्रों के विचारक एवं उद्धारक महापुरुष थे।
प्रस्तुत पुस्तक में महर्षि दयानन्द द्वारा प्रतिपादित समाज व्यवस्था का प्रतिपादन है। प्रस्तुत पुस्तक में तीन अध्याय है – (1) वर्ण – व्यवस्था (2) आश्रम व्यवस्था (3) गृहस्थाश्रम व नारी। इन तीन अध्यायों के अन्तर्गत अनेकों विषयों पर सारगर्भित लेखों को पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है, जैसे – धर्म के साधन, धर्म का आचरण, वैदिक धर्म के उद्धारक, धर्म की सार्वभौमिकता, साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता आदि इन विषयों में सबसे महत्त्वपूर्ण विषय यह है कि इसमें कार्ल मार्क्स जैसे कम्युनिस्टवादियों के धर्म पर लगाये गये आक्षेपों का उत्तर दिया गया है। इसी के साथ कार्ल मार्क्स के सिद्धान्तों की आलोचना प्रस्तुत की गई है। धर्म विषयक लेखों के साथ पुस्तक में शिक्षा सम्बन्धित लेखों का वर्णन है जिनमें मैकाले पद्धति और स्वामी दयानन्द निर्दिष्ट पद्धति का अवलोकन किया गया है। शिक्षा के व्यवहारिक, प्राथमिक, व्यवसायिक स्वरुपों को प्रस्तुत किया गया है। महर्षि दयानन्द के विविध कार्यो के साथ – साथ उनके आयुर्वेद सम्बन्धित ज्ञान का भी प्रतिपादन किया गया है। उपरोक्त तीनों अध्यायों में से तृतीय अध्याय “गृहस्थाश्रम व नारी” अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस अध्याय का गृहस्थाश्रम के सभी आश्रम में महत्वपूर्ण होने एवं महर्षि दयानन्द की नारी विषयक सम्पूर्ण विचारधारा वर्णन करने हेतु गठन किया गया है। इस अध्याय में नारी का वेदों में महत्त्व तथा उनका गौरवशाली स्थान का स्थान का वर्णन किया है। मध्यकाल में नारियों की अवनति और उनकी हीन दशा का वर्णन किया है तथा इस हीन दशा से उनकों पुनः वेदानुसार गौरवपूर्ण दर्जा दिलाने के लिए महर्षि दयानन्द जी द्वारा किये गये कार्यों जैसे – विधवा विवाह, बाल विवाह का विरोध, नारी शिक्षा, पर्दा प्रथा का विरोध आदि का वर्णन है। वर्ण व्यवस्था नामक अध्याय में सभी वर्णों का समाज और राष्ट्र निर्माण में महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है। वर्णव्यवस्था के कर्मानुसार स्वरुप को प्रस्तुत किया है। जाति व्यवस्था से समाज को कितनी हानियाँ है और कर्मानुसार वर्णवमयवस्था के लाभों को व्यक्त किया गया है। महर्षि दयानन्द जी द्वारा जातिवाद के विरोध, शूद्र शिक्षा सम्बन्धित कार्यों का वर्णन है।
प्रस्तुत पुस्तक अनेकों लेखों का संग्रह होने के कारण विचारशील पाठकों एवं स्वाध्याय प्रेमी जिज्ञासुओं के लिए अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। इस पुस्तक के माध्यम से वैदिक धर्म और महर्षि दयानन्द के सामाजिक कार्यों के परिचय से पाठकगण लाभान्वित होंगे।
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