पुस्तक का नाम – भारतवर्ष में विदेशी मुस्लिम आक्रान्ताओं का इतिहास
लेखक का नाम – कर्नल देवमित्र गुप्त
सन् 636 ई. से लेकर सन् 1858 ई. तक के लगभग 1200 वर्ष के काल में अनेकों यवन आक्रान्ताओं ने भारत पर आक्रमण किया तथा भारत को लूटा और यहां के लोगों के धर्म को भ्रष्ट किया। इन यवन आक्रान्ताओं के कार्यकलापों का सप्रमाण, संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। जिन्हें हम भारतीयों को अपने भविष्य के कार्य-कलापों के निर्धारण के लिये जानना आवश्यक है। विशेषकर तब, जब वर्तमान विद्वान भारतीय इतिहासकार, इन सभी विदेशी यवनों को महान्, यशस्वी, समाज सुधारक, प्रजापालक आदि ही नहीं बताते, अपितु इन आक्रमणों द्वारा भारत में अरब व भारतीय संस्कृति के मधुर सम्मिश्रण का ओजस्वी कारण भी मानते हैं तथा भारतीय मुस्लिमों का सम्बन्ध भी जाने अनजाने इन्हीं विदेशियों के साथ जोड़कर उनकी सोच को विकृत करने के प्रयास में लगे हुये है।
प्रस्तुत पुस्तक में इन्हीं यवनों के समकालीन वैतनिक इतिहासकारों तथा विश्व प्रसिद्ध यूरोपीय इतिहासकार, श्री एच. एम. इलियट द्वारा संकलित व रचित ‘मध्यकालीन भारत का इतिहास’ का अष्टखण्डीय ग्रन्थ एवं कुछ अन्य भारतीय व यूरोपीय इतिहासकारों के वर्णनों को सप्रमाण उद्धृत किया है।
इन प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि इस पुस्तक के लेखों और वर्तमान भारतीय इतिहासकारों के निष्कर्षों से कतई मेल नहीं खाते हैं। यथा –
1 अरब लुटेरों, विशेषकर दमिश्क व बगदाद में स्थित, बर्बर लुटेरों के शीर्ष नेतृत्व ने, भारत लूट व विध्वंस का सुनियोजित कार्यक्रम बनाकर, सन 636 ई. में छिटपुट घुसपैठ से प्रारम्भ कर 75 वर्ष बीतते – बीतते यथा 711 ई. में विकराल रुप धारण कर लिया तथा आगमी 500 वर्षों में, मुहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनवी तथा मुहम्मद गौरी द्वारा तीन प्रलयंकारी आक्रमण हुये पश्चात् सन 1206 ई. से भारत में विदेशी सुल्तानों का लगातार शासन प्रारम्भ हो गया।
स्पष्ट है कि पहले तीन आक्रमणकारियों का मात्र उद्देश्य भारतवर्ष में लूट, विध्वंस, बलात्कार, इस्लामीकरण, मन्दिर ध्वस्त कर मस्जिद बनाना, भारतीयों को गुलाम बना अरब देशों में ले जाना आदि निकृष्टतम् जघन्य कार्य अन्तर्निहित है। इनके वैतनिक इतिहासकारों ने भी इन सब बर्बर निकृष्ट कार्यों को उल्लेखित किया है।
2) आगे सन् 1206 ई. से 1526 ई. तक के लगभग 320 वर्षों में हुये विभिन्न सुल्तान वंशों तथा 1526 ई. से 1858 ई. तक शासन करने वाले एक मात्र मुगलवंश के कार्य कलापों का अवलोकन व पर्यवेक्षण करने पर एक तथ्य सुस्पष्ट रुप से प्रकाश में आता है कि ये सभी अपने पूर्ववर्ती तीनों लुटेरों से कहीं अधिक संवेदनहीन, नृशंस व भारतीयों को हर प्रकार से हानि पहुँचाने में महारत हासिल किये हुये थे। यथा – पहले 320 वर्षों में गुलाम, खिलजी, तुगलक, सैयद तथा लोदी वंश के सुल्तानों ने दिल्ली का तख्त सम्हाला, इन सभी के वैतनिक इतिहासकारों ने एक स्वर में यह प्रमाणित किया है कि –
(अ) ये सभी सुल्तान संवेदनहीन, व्यभिचारी, नर मैथुनकर्ता, धर्मान्ध, विध्वंसक, निकृष्टतम् तरीकों को अपना, इस्लामीकरण करने वाले, मन्दिरों को मस्जिदों में परिवर्तित करने वाले भारतीय पुरुषों व स्त्रियों के अपहर्ता तथा क्रूरतम् लुटेरे थे।
(ब) इतना ही नहीं, ये सभी नर पिशाच, अपनी सत्ता बचाये रखने के लिये तथा उसे अपने अधिकार में रखने के लिये, नित आपस में भी, वीभत्सतम् यन्त्रणायें व हत्याकाण्डों का सृजन करते रहते थे।
इन सभी तथ्यों से यह सिद्ध हो जाता है कि न तो ये भारतीय थे, न ही इन्हें भारत या भारतवासियों से कोई प्यार था। फिर ये किस आधार पर हमारे भारतीय मुस्लिम भाइयों के किसी भी प्रकार के संबंधी हो सकते है?
इन सभी विसंगतियों का हल्का-सा इंगितीकरण इस लघु पुस्तिका में करने का प्रयास किया गया है।
इस लघु पुस्तिका का मुख्य उद्देश्य हम भारतीय पूर्वजों की संतानों यथा हिन्दू व मुस्लिमों के गहरे बैठे परस्पर अविश्वास को दूर करना है।
आशा है कि विज्ञबन्धु इस दिशा में सोचकर समाज में एकरसता लाने का प्रयास करेंगे।
Reviews
There are no reviews yet.