पुस्तक का नाम – भारतीय सौन्दर्यशास्त्र
लेखक का नाम – प्रो. विजयपाल शास्त्री
भारतीय सौन्दर्यशास्त्र कोई नूतन विषय नहीं है अपितु भारतीय कवियों के काव्यसौन्दर्य तथा काव्यशास्त्र के सिद्धान्तों को ही सौन्दर्यशास्त्र कहा जाता है। परमात्मा के द्वारा निर्मित इस जगत् में अनन्त तथा अपरिमित सौन्दर्य भरा हुआ है। इसमें असुन्दर कुछ भी नहीं है किन्तु उस सौन्दर्य को सहृदय और सुसरिक कविजन ही देख सकते हैं और अपनी कव्यप्रतिभा तथा नैपुण्य से शब्दों द्वारा उसे चित्रित करने में समर्थ हो सकते हैं। प्रतिभाशून्य अरसिक साधारण जन उस सौन्दर्य का अवलोकन तथा अनुभव नहीं कर सकते हैं। रस, अलंकार, गुण, रीति, गहन अनुभूति, उर्वर कल्पनाशक्ति और प्रखर शब्दार्थज्ञान आदि तत्त्व सौन्दर्यशास्त्र के घटक हैं। इन सबमें निष्णात रससिद्ध कवि ही उस सौन्दर्य के मर्म को समझते हैं। साधारण जनों के लिये भावसौन्दर्य तथा वस्तुसौन्दर्य सर्वथा अलभ्य है। भारतीय सौन्दर्यशास्त्र की इन्हीं विशेषताओं का विवेचन प्रस्तुत ग्रन्थ में किया गया है। भारतीय सौन्दर्यशास्त्र पर विगत कतिपय वर्षों में अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं जो पाण्डित्य तथा आलोचनात्मक वैभव की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई हैं, किन्तु उन सभी पुस्तकों में साधारण तथा व्युत्पन्न दोनों अध्येताओं की ग्रहणशक्ति को ध्यान में रखकर कुछ अपूर्णता दृष्टिगत हुई है। इसी अपूर्णता को केन्द्र में रखकर इस ग्रन्थ की रचना की गई है जिसमें इस अपूर्णता को दूर किया गया है। इस ग्रन्थ की रचना में यह ध्यान रखा गया है कि यह साधारण तथा व्युत्पन्न दोनों प्रकार के छात्रों के लिये उपयोगी हो तथा समान रूप से हितसम्पादन कर सके। पूर्वग्रन्थों में एक न्यूनता यह भी देखी गयी है कि उन पुस्तकों में मौलिकता का अभाव था। वे प्रायः पाश्चात्त्य सौन्दर्यशास्त्र की मान्यताओं को आधार बनाकर लिखी गयीं थीं। बहुत – सी पुस्तकें तो आंग्लाभाषा का अनुवाद मात्र प्रतीत होती थी। विशुद्ध भारतीय दृष्टिकोण का उनमें अभाव था। यह पुस्तक भारतीय काव्यशास्त्रियों और कवियों के सिद्धान्तों तथा उनके मौलिक उद्धरणों से मण्डित विशुद्ध भारतीय सौन्दर्य का परिचय कराती है। पुस्तक में रस, अलंकार, गुण और रीति के स्वरूप को मूल उद्धरणों से विशद किया गया है जिससे साधारण पाठक भी उससे अभिज्ञ हो सके। इसके अतिरिक्त सौन्दर्य के कुछ नवीन विषय भी इसमें जोड़े गये हैं जो अन्य ग्रन्थों में नहीं देखे जाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक के विषय में यह ध्यातव्य है कि इसमें उल्लिखित काव्यशास्त्रियों के समग्र सिद्धान्तों का अविकल विवेचन नहीं किया गया अपितु उन्हीं बिन्दुओं का ग्रहण किया गया है जिनमें सरसता आकर्षण मधुरता सौन्दर्य और सहृदयों के हृदयों का रंजन करने की योग्यता हो। यह ग्रन्थ सौन्दर्यशास्त्र के जिज्ञासुओं में ज्ञान की वृद्धि में अत्यन्त सहायक होगा।
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