Vedrishi

Free Shipping Above ₹1500 On All Books | Minimum ₹500 Off On Shopping Above ₹10,000 | Minimum ₹2500 Off On Shopping Above ₹25,000 |
Free Shipping Above ₹1500 On All Books | Minimum ₹500 Off On Shopping Above ₹10,000 | Minimum ₹2500 Off On Shopping Above ₹25,000 |

भारतीय शिक्षा के मूल तत्व

Bhartiya Shiksha ke Mul Tatva

260.00

SKU 37473-HS00-0E Category puneet.trehan

In stock

Subject : Bhartiya Shiksha ke Mul Tatva
Edition : 2015
Publishing Year : N/A
SKU # : 37473-HS00-0E
ISBN : 9789381500316
Packing : N/A
Pages : 252
Dimensions : N/A
Weight : NULL
Binding : Paperback
Share the book

भारत अपने जीवन के उषाकाल से ही ज्ञान की साधना में रत रहा है। सम्भवतः इसका नाम भी इसीलिये 'भा' अर्थात् प्रकाश = ज्ञान में रत 'भारत' पड़ा है। अपनी विशिष्ट शिक्षा पद्धति के कारण ही भारत ने सहस्रों वर्षों तक न केवल विश्व का सांस्कृतिक नेतृत्व किया, अपितु उद्योग-धन्धों, कला-कौशल एवं ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा। प्राचीन भारत में ऋषियों ने गणित और विज्ञान की नींव रखी। उन्होंने काल और अवकाश, दोनों को गणनाबद्ध किया और अन्तरिक्ष को भी नापा । भारतीय ऋषियों ने पदार्थ की रचना का विश्लेषण किया और आत्मतत्त्व के स्वरूप का साक्षात्कार किया। उन्होंने तर्क, व्याकरण, खगोल शास्त्र, दर्शन, तत्त्वज्ञान, औषधिविज्ञान, शरीर-रचना विज्ञान और गणित जैसे विविध विषयों में महती प्रगति की। भारतीय समाज के नैतिक गुणों के सम्बन्ध में ई.पू. 300 वर्ष में ग्रीक राजदूत मेगस्थनीज ने लिखा है, "किसी भारतीय को झूठ बोलने का अपराध न लगा। सत्यवादिता तथा सदाचार उनकी दृष्टि में बहुत ही मूल्यवान वस्तुएँ हैं। इस प्रकार भारतीय शिक्षा-पद्धति के द्वारा भारत ने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में ही नहीं, अपितु नैतिक स्तर की दृष्टि से भी बहुत प्रगति की। प्राचीन काल में शिक्षा का जन-सामान्य में प्रसार था। इसी कारण इसका समाज के जीवन पर प्रभाव था। – .

डा. अल्तेकर के अनुसार उपनिषत्काल में भारत में साक्षरता 80 प्रतिशत थी। उपनिषद् साहित्य के एक राजा का यह कथन कि “मेरे राज्य में कोई भी निरक्षर नहीं है", निराधार नहीं है। तक्षशिला, नालन्दा, वल्लभी, विक्रमशिला, ओदन्तपुरी, मिथिला, नदिया और काशी आदि विश्वविद्यालयों की ख्याति सम्पूर्ण विश्व में फैली हुई थी। बौद्ध . काल में जन-सामान्य में शिक्षा-प्रसार को और अधिक प्रश्रय मिला। भारत के प्रायः प्रत्येक प्रमुख ग्राम में एक पाठशाला होती थी। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल में 'टोल' तथा दक्षिण भारत में 'अग्रहार' नाम से हजारों की संख्या में विद्यालय चलते थे। अठारहवीं शताब्दी के मध्य में केवल बंगाल में 80 हज़ार टोल थे। भारतीय शिक्षा का विशिष्ट उद्देश्य रहा – मानव व्यक्तित्व का उच्चतम विकास। भौतिक एवं आध्यात्मिक, दोनों ही क्षेत्रों में भारतीय विद्यालयों ने ऐसे ज्ञान आविष्कृत किये, जिनके ऋणी आज विश्व के दार्शनिक एवं वैज्ञानिक हैं। भारत की शिक्षा-व्यवस्था को विदेशी आक्रमणों का भीषण आघात सहन करना पड़ा। मुसलमानों के शासन काल में यहाँ के शिक्षा केन्द्रों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया। किन्तु फिर भी मुस्लिम शासक भारतीय शिक्षा को उतनी हानि नहीं पहुंचा सके, जितनी हानि अंग्रेजों ने पहुँचाई। अंग्रेजों ने मुसलमान शासकों के समान शिक्षा केन्द्रों को जलाकर या ध्वस्त करके नष्ट नहीं किया, प्रत्युत् भारत में अंग्रेजी शिक्षा-पद्धति प्रचलित की। मेकाले की कुटिल नीति के अनुसार 'अंग्रेजी शिक्षा-पद्धति के द्वारा भारतीय केवल शरीर से भारतीय रहेंगे, मन से वे पूर्णतः अंग्रेज बन जायेंगे।' उसकी वह नीति सफल हुई। अंग्रेजी शिक्षित भारतीय युवकों के मन में अपने धर्म, संस्कृति एवं जीवन-मूल्यों के प्रति तिरष्कार की भावना भड़क उठी और वे पश्चिमी सभ्यता की ओर आकृष्ट होने लगे। अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से भारत में में बहुत बड़ी मात्रा में अंग्रेज अपने मानस-पुत्रों का निर्माण करने में सफल हुए। 

दुर्भाग्यवश स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में आज भी थोड़े बहुत बाह्य परिवर्तन के साथ वही विदेशी शिक्षा-पद्धति प्रचलित है। उसी के परिणाम स्वरूप आज भारतीय जन-मानस विनाश के कगार पर खड़ा हुआ है। एक विद्वान के अनुसार, “वर्तमान भारतीय शिक्षा न 'भारतीय' है और न 'शिक्षा' ।” प्रत्येक राष्ट्र का भविष्य उसकी शिक्षा-व्यवस्था पर निर्भर है, अतः आज सभी वर्तमान शिक्षा पद्धति में परिवर्तन लाने की आवश्यकता अनुभव कर रहे हैं। यह संतोष का विषय है कि गैर-सरकारी क्षेत्र में इस दिशा में कुछ प्रयास भी आरंभ हुए हैं तथा प्रचलित शिक्षा-पद्धति के विकल्प के रूप में भारतीय शिक्षा-पद्धति के विकास हेतु देश में चिन्तन चल पड़ा है और कुछ प्रयोग भी हो रहे हैं।

इस चिंतन एवं प्रयोगों के फलस्वरूप यह 'भारतीय शिक्षा के मूल तत्त्व' ग्रन्थ प्रस्तुत है। लेखक कोई विद्वान अथवा शिक्षाविद् नहीं है, किन्तु शिक्षा क्षेत्र के सामान्य कार्यकर्ता के रूप में विद्वानों को पढ़ने एवं सुनने का अवसर उसे अवश्य प्राप्त हुआ है। उसी के आधार पर इस ग्रन्थ का लेखन संभव हुआ है। इसमें जो कुछ ग्रहण करने योग्य है है वह सब विद्वज्जनों की संगति का फल है और जो त्रुटिपूर्ण है वह मेरी अल्पज्ञता के कारण है। यदि इस ग्रन्थ से उन लोगों को कुछ लाभ मिल सका, जो शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण के कार्य में संलग्न हैं, तो मैं अपना प्रयास सफल समशृंगा। मैं उन सभी सहृदय विद्वज्जनों का हृदय से आभारी हूँ, जिनकी प्रेरणा से इस ग्रन्थ की रचना सम्भव हो सकी। – .

सुविख्यात शिक्षाविद् डा. सीताराम जायसवाल का भी कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने इस ग्रन्थ की प्रस्तावना लिखने की कृपा की।

-लज्जाराम तोमर

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Bhartiya Shiksha ke Mul Tatva”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recently Viewed

You're viewing: Bhartiya Shiksha ke Mul Tatva 260.00
Add to cart
Register

A link to set a new password will be sent to your email address.

Your personal data will be used to support your experience throughout this website, to manage access to your account, and for other purposes described in our privacy policy.

Lost Password

Lost your password? Please enter your username or email address. You will receive a link to create a new password via email.

Close
Close
Shopping cart
Close
Wishlist