लेखक ः डा. कपिलदेव द्विवेदी
पुस्तक का नाम – भाषा –विज्ञान एवं भाषा –शास्त्र
लेखक – डा. कपिलदेव द्विवेदी
प्रस्तुत ग्रन्थ में ध्वनि-विज्ञान और स्वनिम–विज्ञान विषय पर विशेष महत्त्वपूर्ण सामग्री दी गई है। स्व–निर्मित श्लोको के द्वारा पारिभाषित शब्दों आदि की व्याख्या की गई है। इनसे विषय सरलता से स्मरण हो सकेगा। जर्मन, फ्रेंच, चीनी, अरबी आदि भाषाओं के विषय में पर्याप्त उपयोगी सामग्री दी गई है। संस्कृत के प्रामाणिक ग्रंथों से यथास्थान उपयुक्त उद्धरण प्रस्तुत किये गये हैं। इस ग्रंथ में लेखक का उद्देश्य है – सरलता, संक्षेप और प्रामाणिकता। मल्लिनाथ के शब्दों में कह सकते है –
नामूलं लिख्यते किंचिद्, नानपेक्षितमुच्चते।
ग्रंथ की कतिपेय विशेषताएँ
१. विषय को सरल, सुबोध एवं रोचक ढंग से प्रस्तुत करना।
२. भाषाविज्ञान एवं भाषाशास्त्र का एकत्र समन्वय।
३. भाषाशास्त्र में हुए नवीनतम अनुसंधानों का संकलन।
४. प्राचीन भारतीय वाङ्मय में प्राप्त भाषाशास्त्रीय तथ्यों का संग्रह।
५. भाषा शास्त्र की आधार शिला पाणिनीय व्याकरण का विवेचन।
६. भाषा के स्वरूप का शास्त्रीय विवेचन।
७. भाषा की उत्पत्ति विषय में नवीन मंतव्य की स्थापना।
८. बोलने तथा सुनने की प्रक्रिया का वैज्ञानिक निरूपण।
९. प्रायोगिक ध्वनिविज्ञान का विस्तृत प्रतिपादन।
१०. ध्वनिविज्ञान का विस्तृत विवेचन।
११. विशिष्ट चित्रों द्वारा ध्वनि विज्ञान का स्पष्टीकरण।
१२. संस्कृत और अवेस्ता की तुलना।
१३. संस्कृत की संधियों का भाषावैज्ञानिक विवेचन।
१४. पारिभाषिक शब्दों आदि के लिए संस्कृत में श्लोक।
आशा है कि यह ग्रंथ भाषाशास्त्र के प्रेमी संस्कृत एवं हिन्दी के अध्यापकों और छात्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकेगा।
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