महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने अपने वेदभाष्य – निर्माण से पूर्व एक विस्तृत भूमिका की रचना की जिसमें अपने वेदभाष्य के उद्देश्यों का स्पष्टीकरण किया। इस ग्रन्थ में ऋषि ने अपने सभी वेदविषयक सिद्धान्तों का विशद निरूपण किया है। इसमें लगभग पैंतीस शीर्षक के अन्दर वेद के प्रमुख प्रतिपाद्य पर प्रभूत प्रकाश डाला गया है जिन में से आगे लिखे विषय विशेष उल्लेखनीय है – वेदोत्पत्ति, वेदनित्यत्व, वेदविषय, वेदसंज्ञा, ब्रह्मविद्या, वेदोक्तधर्म, सृष्टिविद्या, पृथिवीआदि भ्रमण, गणित, मुक्ति, पुनर्जन्म, वर्णाश्रम, पञ्चमहायज्ञ, ग्रन्थप्रामाण्य, वेद के ऋषि-देवता-छन्द-अलङ्कार-व्याकरण आदि।
महर्षि के इस ग्रन्थ पर विस्तृत व्याख्या स्वामी विद्यानन्द जी सरस्वती जी द्वारा भूमिका भास्कर नाम से की गयी है। इस ग्रन्थ की निम्न विशेषताएँ है –
1) इस ग्रन्थ में प्रथम अवतरणिका है जिसमें वेदों के नित्यत्व और वेदों में पशुबलि और वेद मन्त्र के विविध अर्थों पर प्रकाश डाला है।
2) इस ग्रन्थ में ऋषि दयानन्द द्वारा दिये हुए प्रत्येक कथन की विस्तृत व्याख्या की गई है।
3) स्वामी जी के मन्तव्य की पुष्टि में व्याख्या में वेदों से लेकर शुक्रनीति पर्यन्त ग्रन्थों के प्रमाण दिये है।
4) महर्षि दयानन्द द्वारा उद्धृत प्रत्येक ग्रन्थों के संदर्भ दिये गए है।
5) परिशिष्ट में ऋग्वेदभाष्यभूमिका पर लगाये गये आश्रेपों का उस समय स्वामी दयानन्द जी ने जो उत्तर दिया था उसका सङ्कलन भी किया गया है तथा ऋषि दयानन्द द्वारा वेद भाष्य सम्बन्धित पत्रों का भी सङ्कलन किया है।
6) युधिष्ठिर मीमांसक जी द्वारा लिखे गये ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका का इतिहास पुस्तक में दिया गया है।
7) भवानीलाल भारतीय द्वारा बनाई गई ऋग्वेदभाष्यभूमिका के विभिन्न संस्करणों, आलोचनात्मक ग्रन्थों, मंडनात्मक ग्रन्थों की सूची दी गई है।
महर्षि दयानन्द के वेद भाष्य के अध्ययन के लिए उनकें द्वारा लिखी हुई भूमिका को पढ़ना आवश्यक है और भूमिका पर उठ रही शङ्काओं और भूमिका को समझने के लिए उसकी विस्तृत व्याख्या “भूमिका भास्कर” को अवश्य ही पढ़ना चाहिए।
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