पुस्तक का नाम – बोलो! किधर जाओगे?
लेखक का नाम – आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
वेदों का उपदेश है कि –
“संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथापूर्वे सञ्जानाना उपासते।। – ऋग्वेद 10.17.2”
इस उपदेश द्वारा वेद सभी प्राणिमात्र को आपस में मिलजुल कर रहने का संदेश देते हैं।
वेद के इन्हीं उपदेशों से शिक्षा लेकर हमारे ऋषियों ने भी कहा –
“धारणा धर्ममित्याहुर्धर्मेण विधृताः प्रजाः।
य स्याद् धारणा संयुक्तः स धर्म इति निश्चयः।।” – महाभारत शान्तिपर्व
“जिससे सम्पूर्ण प्राणियों का धारण एवं पोषण होता है, वही धर्म कहलाता है।”
महान स्मृतिकार महर्षि मनु ने भी कहा है –
“धृति क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।“
धर्म के दस लक्षण हैं। धैर्य, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि, ज्ञान, सत्य, अक्रोध।
जो व्यक्ति इन वैदिक मार्गों को समझ लेता है, वो फिर धर्म विरोध आचरण नहीं करता है किन्तु इसके लिए इन धर्म के लक्षण और धर्म को समझना अत्यन्त आवश्यक है। व्यक्ति जब इस विषय में चिन्तन रहित हो जाता है तो विभिन्न मत – मतान्तर और छद्म समाज सुधारक और समाजसेवियों के षड्यंत्र में फँस जाता है। इन विभिन्न मत – मतान्तरों और छद्म बुद्धिजीवियों के कारण आधुनिक पीढ़ी व समाज अंधविश्वास में तो पड़ ही रहा है तथा आधुनिक पीढ़ी राष्ट्र व समाज के किसी भी ऋण को न मानकर भारतीय शैली की अर्थ, शिक्षण, न्याय, प्रशासन, रक्षा, कृषि, चिकित्सा, स्वास्थ्य, उद्योग – व्यवसाय, आहार – विहार की अवेहलना कर पाश्चात्य पद्धति को ही अपनाती नजर आती है। इसके साथ ही समाज में आतंकवाद, गुंड़ागर्दी, मार्क्सवाद, पूंजीवाद, असभ्यता, अन्यायपूर्ण व्यवहार, निराशा, कुंठित जीवन, आरक्षण, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, व्यभिचार इत्यादि में वृद्धि हो रही है।
देश व समाज की सुरक्षा व उन्नति के लिए आवश्यक है कि धर्म के सत्य स्वरूप को समझा जाये, समाज में एक ऐसी व्यवस्था हो जो सम्पूर्ण समाज और राष्ट्र को मजबूत और सुन्दर बनाये। प्रस्तुत पुस्तक “बोलो किधर जाओगे?” इसी दृष्टिकोण से आचार्य जी द्वारा लिखी गई है।
आजकल समाज में धर्म के नाम पर विभिन्न मत, पंथ, वाद प्रचलित हो गये हैं। जिनमें हिन्दू, जैन, बौद्ध, ईसाई, इस्लाम, भोगवाद, मूलनिवासी वाद इत्यादि प्रचलित हैं। किन्तु अधिकांश लोगों को उनके मत पथ और वाद की पुस्तकों व सिद्धान्तों का पता नहीं है। प्रस्तुत पुस्तक के द्वारा आचार्य जी ने हमारे समाज, जो विभिन्न जाति – उपजाति, मजहब, पंथों में बंटा हुआ इधर – उधर भटक रहा है, को एक नई दिशा दी है।
आशा है कि इस पुस्तक के अध्ययन के द्वारा पाठकगण धर्म का उचित स्वरूप समझ कर विभिन्न सम्प्रदायों और वादों के मकड़जाल से अपने और अपने समाज, राष्ट्र को सुरक्षित करने का प्रयास करेंगे।
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Bolo Kidhar Jaoge?
बोलो किधर जाओगे?
Bolo Kidhar Jaoge?
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Subject : About current Dharmik Issues
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