अपनी पुस्तक यू कैन ट्रस्ट द कम्युनिस्ट (आप साम्यवादियों पर विश्वास कर सकते हैं)' में डॉक्टर फ्रेड स्वराज कहते हैं, लोग अक्सर कहते हैं कि आप साम्यवादियों पर भरोसा नहीं कर सकते। परंतु यह सही नहीं है। आप कैंसर कोशिकाओं पर गुणात्मकता की अपनी प्रकृति के अनुसार कार्य करने का विश्वास कर सकते हैं… इसी प्रकार आप साम्यवादियों पर उनके सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने का भरोसा कर सकते हैं।
साम्यवादी सिद्धांत तथा कार्य के इस पहलू पर जोर दिया जाना चाहिए क्योंकि ऐसे लोग हैं जो ईमानदारी से विश्वास करते हैं कि वैसे साम्यवाद अच्छा है, परंतु इसे कार्यरूप में लाने वाले लोग इसके आधारभूत सिद्धांतों से विचलित हो गए हैं। ऐसे मासूम लोग नहीं जानते कि वे साम्यवाद के बारे में स्वयं मार्क्स तथा लेनिन, स्टालिन, माओ-त्से-तुंग और अधिक करीब में ई.एम.एस. नम्बूदिरीपाद, ए.के. गोपालन, रणदिवे आदि से अधिक जानने का दावा कर रहे हैं।
साक्ष्य
इस विषय में एक प्रसिद्ध प्रामाणिक घटना है। स्टालिन के उत्तराधिकारी खुश्चेव ने स्टालिन द्वारा फैलाए गए आतंकों का एक लंबा तथा लोमहर्षक वर्णन किया। उन्होंने जिस विस्तार से वर्णन किया, उसकी कल्पना इस तथ्य से की जा सकती है कि उनका लंबा भाषण एक सुर में ७ से ८ घंटे तक चला! उन्होंने स्टालिन की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहा, 'स्टालिन एक भयंकर जन-संहारक था और उसे ऐसी हत्याओं में आनंद आता था। अपने निकट सहयोगियों को उत्पीड़ित करने में उसे मजा आता था। यह अनिश्चित था कि उससे मिलने के लिए जाने वाला कोई व्यक्ति सुरक्षित अपने परिवार के पास वापस आ पाएगा या गोली मारने के लिए सेना के हवाले न कर दिया जाएगा।' परंतु अंत में उन्होंने जो कहा, वह अत्यंत महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय है। उन्होंने कहा 'यह सब चीजें आपके सामने रखने पर मुझे गलत मत समझिए। स्टालिन एक अच्छा और ईमानदार व्यक्ति था। वह मार्क्सवाद तथा लेनिनवाद में विश्वास रखता था। उसने जो कुछ भी किया, उस प्रतिबद्धता के अनुकूल किया।'
सोवियत संघ में हत्याओं की संख्या
अब सोवियत रूस तथा चीन में जनसंहार के कुछ महत्वपूर्ण दौरों की एक झलक देखते हैं। २० अप्रैल, १९८८ के 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने इजवेस्तिया के साप्ताहिक परिशिष्ट निदालय के अंक में प्रकाशित प्रो. आई.गॉक्स बेस्तुजहेव लाडा के एक लेख का सार प्रकाशित किया। वह स्टालिन के कार्यकाल के दौरान मारे गए लोगों की कुल संख्या, जो ५ करोड़ की विस्मयकारी संख्या है और जिसमें दूसरे विश्वयुद्ध में मारे गए २ करोड़ लोग शामिल नहीं थे, देते हुए कहते हैं, 'अपना उत्तर स्वयं खोजिए।' इनमें से '३० के दशक के आरंभ में 'कुलकों' के खिलाफ अभियान में २.५ करोड़ लोग मारे गए। शुद्धिकरण के शिकार के सम्बंध में लेखक कहता है, ‘सन् १९३५-५३ के दौरान दमित तथा मारे गए लोगों की कुल संख्या सन् १९२३-३३ के दौरान दमित या मारे गए लोगों की संख्या से काफी कम है। वह संख्या ५ करोड़ की है।'
(यहां पर यह जानना उपयुक्त होगा कि कुलक शब्द किन पर लागू होता है। श्री रामस्वरूप अपनी पुस्तक 'कम्युनिज्म एंड पीजेंटरी' (पृष्ठ ४३)) में स्पष्ट करते हैं कि कुलक एक भूस्वामी नहीं था। भूस्वामी बहुत पहले ही साम्यवादियों द्वारा प्रेरित किसानों द्वारा समाप्त किए जा चके थे। कलक समय बीता और जल्दी ही एक काली सुबह को लोगों की आवाज बंद कर दी गया। जिन लोगों संख्या ३५,००० थी, के नरसंहार में समाप्त हुई और बहुत-से लोगों को गिरफ्तार करके कठोर श्रम के लिए दूरस्थ स्थानों पर भेज दिया गया। इस पूरे नाटक के पीछे का घिनौना उद्देश्य स्पष्ट हो ने अज्ञानता में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया था, उन्हें एक विशाल छापे में चुन-चुनकर समाप्त कर दिया गया। केवल सौ नहीं, बल्कि सभी लाखों-लाख फूल जो अभी-अभी खिले थे, उन्हें तोड़कर एक प्रचंड भट्ठी डाल दिया गया। जब माओ ने सन् १९६१ में फिर से सैकड़ों फूलों' को खिलाने की चेष्टा की, तो एक बार अपनी अंगुलियां जला चुके लोगों ने या तो अपना मुंह बंद रखा या सरकार की नीतियों के गुण गाने लगे।
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