पुस्तक का नाम – दयानन्द सिद्धान्त भास्कर
लेखक का नाम – कृष्णचन्द्र विरमानी
विश्व के महान समाज सुधारक, वेदों के साक्षात धर्मा ऋषि दयानन्द जी ने कई पुस्तकों का लेखन किया और कई पत्रों, शास्त्रार्थों के माध्यम से धर्म प्रचार किया। स्वामी जी ने समाज सुधार के उद्देश्य से सत्यार्थ प्रकाश लिखा तो वेदों के प्रचार और वेद के सम्बन्ध में उत्पन्न भ्रांतियों के नाश के लिए ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका नामक ग्रन्थ लिखा, संस्कृत भाषा और व्याकरण के प्रचार-प्रसार के लिए वेदांग प्रकाश आदि ग्रन्थों की रचना की, वेद विरुद्ध मत के खंड़न में प्रवृत्त होकर स्वामी जी ने भागवत खंड़नम्, भ्रमोच्छेदन, भ्रान्तिनिवारण, स्वामी नारायण मत खंड़न, वेदान्ति ध्वान्त निवारण, पाखण्डखण्डन आदि पुस्तकों की रचना की, गौ रक्षा के लिए गोकरुणा निधि और व्यवहारिक ज्ञान के लिए व्यवहारभानु नामक पुस्तक की रचना की।
इस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र में स्वामी जी ने अपना योगदान दिया है। इनकी इन पुस्तकों में अनेकों उपदेश वर्तमान है। इन्ही उपदेशों का विषयानुसार संकलन प्रस्तुत पुस्तक “दयानन्द सिद्धान्त भास्कर” में किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक में स्वामी जी के लेखों, ग्रन्थों और पत्रों तथा शास्त्रार्थों का परिचय दिया गया है। उनहीं लेखों, पत्रों, पुस्तकों से अनेकों महत्त्वपूर्ण उपदेशों का संकलन इस पुस्तक में किया गया है।
इस पुस्तक में महर्षि के ईश्वर, पुरुषार्थ, व्यभिचार, शुद्धिकरण, सन्ध्योपासना, अग्निहोत्र, मांसाहार निषेध, भोजनाचार, स्त्री और शुद्र शिक्षा, अतिथि, यज्ञोपवीत एवं शिखा, भारतीय इतिहास, राष्ट्र भक्ति, साकार निराकारवाद, ग्रन्थों की प्रमाणता-अप्रमाणता, ईश्वरीय ज्ञान, विदेश यात्रा, वैदिक सिद्धि, पुनर्जन्म, पुनर्विवाह, ज्योतिष शास्त्र, अंधविश्वास, सृष्टि विज्ञान, आश्रम व्यवस्था, वर्णव्यवस्था आदि अनेकों विषयों पर लेखों और मन्तव्यों का संग्रह किया गया है।
जो लोग महर्षि के मूल ग्रन्थों को किसी कारण पढ़ नहीं पा रहे हैं, उनके लिए यह पुस्तक विशेषतः अत्योपयोगी सिद्ध होगी। इस पुस्तक में ऋषि वचनामृतरूपी वाटिका से सुन्दर पुष्पों का संग्रह करके और उन्हें एक सूत्र में ग्रन्थित करके एक रमणीय पुष्प-माला तैयार की गई है। इस माला के फूलों की एक-एक पंखुड़ी में अद्भूत सौन्दर्य है, सौरभ है माधूर्य है।
आशा है कि यह संग्रहात्मक ग्रन्थ नवयुवकों, बालकों और स्त्रियों के हृदयों में विशेषतः ईश्वर-विश्वास, सत्य-निष्ठा, सदाचार, निर्भयता और समाज-सेवा आदि उत्कृष्ट गुणों के संचार करने में सहायक होगा।
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