श्रीमद्भगवद्गीता मोहग्रस्त अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करने वाला उपदेश मात्र नहीं है और न ही केवल हिन्दुओं को धर्माचरण में प्रवृत्त कराने वाला एक धार्मिक ग्रन्थमात्र। यह तो एक समग्र दर्शन है जिसके सार्वभौमिक, सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक उपदेशों को आत्मसात् करके संसार का कोई भी व्यक्ति मानसिक द्वन्द्वों से मुक्त होकर उचित कर्त्तव्य पथ पर निरन्तर अग्रसर होता हुआ अपने अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। श्रीमता भगवता गीता ‘श्रीमद्भगवद्गीता’। यहाँ आदरसूचक श्रीमान् विशेषणयुक्त भगवान् शब्द का प्रयोग श्रीकृष्ण के लिए हुआ है। और ‘गै गाने’ धातु से भूतकाल में निष्ठाप्रत्यय ‘क्त’ तथा स्त्रीलिङ्गी ‘टाप्’ प्रत्यय करने पर ‘गीता’ शब्द निष्पन्न होता है। इस प्रकार भगवान् के द्वारा गाया गया ज्ञान ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ है। तिलक जी के मतानुसार इस ग्रन्थ में सभी उपनिषदों का सार विद्यमान होने से इसका पूरा नाम श्रीमद्भगवद्गीता-उपनिषत् है। और यहाँ. “श्रीभगवान् के द्वारा गाया गया अर्थात् कहा गया उपनिषद्” यह अर्थ प्रकट करने के लिए “श्रीमद्भगवद्गीता” इस विशेषण का स्त्रीलिङ्ग में प्रयोग हुआ है क्योंकि विशेष्यरूप ‘उपनिषत्’ शब्द संस्कृत में स्त्रीलिङ्गी है। यद्यपि यह एक ही ग्रन्थ है किन्तु सम्मान के लिए भाष्यकारों ने ‘श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु’ ऐसा सप्तमी के बहुवचन का प्रयोग प्रत्येक अध्याय के अन्त में समाप्ति दर्शक संकल्प में किया है। धीरे-धीरे नामों को संक्षिप्त करने की प्रवृत्ति वाले लोगों ने आदरसूचक पद, प्रत्यय तथा अन्त के सामान्य जातिवाचक (उपनिषद्) शब्दों का भी प्रयोग छोड़ दिया जिसके कारण आजकल ‘गीता’ यह संक्षिप्त नाम ही अधिक प्रचलित है।
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Geeta men Aatmaprabandhan
गीता में आत्मप्रबन्धन
Geeta men Aatmaprabandhan
₹100.00
Subject : Geeta men Aatmaprabandhan, self Management In Geeta
Edition : 2012
Publishing Year : 2012
SKU # : 37222-PP00-0H
ISBN : 9788171104055
Packing : Paperback
Pages : 266
Dimensions : 14X22X6
Weight : 297
Binding : Paperback
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