‘उपनिषद्यते-प्राप्यते ब्रह्मात्मभावोऽनया इति उपनिषद्।’ जिससे ब्रह्म का साक्षात्कार किया जा सके, वह उपनिषद् कहाती है। उपनिषदों में ब्रह्मज्ञान अथवा ब्रह्मविद्या का ही प्रधानतया विवेचन तथा वर्णन किया हुआ है, जिससे उपनिषद् को अध्यात्मविद्या भी कहते हैं।
उपनिषद् सनातन दार्शनिक ज्ञान के मूल स्रोत हैं। वे केवल प्रखरतम बुद्धि के ही परिणाम नहीं है, अपितु प्राचीन ऋषियों की अनुभूति के फल हैं।
उपनिषद् भारतीय संस्कृति के प्राणस्वरूप हैं। सहस्रों वर्षों से लगातार यह उपनिषद् ज्ञान भारतीय साधना क्षेत्र में समस्त नर-नारियों के अशेष विचित्रतामय जीवन में सब प्रकार के जागतिक ज्ञान, लौकिक कर्म और हृदयगत भावप्रवाह को आश्चर्यजनक रूप से अनुप्राणित करता आ रहा है। सभी पर इसका अक्षुण्ण शासन है।
उपनिषद् शान्ति और विश्व प्रेम का जो महान् सन्देश देना चाहते हैं जिनका चित्त अशान्त है, उन्हें चित्त की सान्त्वना के लिए उपनिषदों से बढ़कर कोई दूसरा ग्रन्थ नहीं मिल सकता। इनके अध्ययन से मनुष्य के विचार एवं हृदयगत भाव संयत होते हैं और सामान्यतः उनका मनुष्य पर महान् आध्यात्मिक प्रभाव पड़ता है। शोपनहर जैसे दार्शनिक को भी उपनिषदों से शान्ति एवं आश्वासन प्राप्त हुआ है।
प्रधानतया उपनिषदों का लक्ष्य ब्रह्मविद्या उपलब्धि की ही ओर है इसीलिए तत्वज्ञान एवं तदुपयोगी कर्म और उपासनाओं का विशद तथा विस्तृत वर्णन किया गया है।
Reviews
There are no reviews yet.