उपाध्याय जी जन्मजात दार्शनिक थे। दर्शन और सिद्धान्त सम्बन्धी अनेकों उच्चकोटि के ग्रन्थ उन्होंने लिखे। जब से मनुष्य संसार में आया है तभी से उसे यह जानने की इच्छा हुई कि यह संसार क्या है? इस संसार का निर्माता कौन है? मैं कौन हूँ? यह शरीर क्या है? मैं कहाँ से आया हूँ? मुझे कहाँ जाना है? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? ये चिरन्तन प्रश्न हैं।
मनुष्यजन भी इन पहेलियों को सुलझाने में निरन्तर लगा हुआ है। प्रश्नोत्तर शैली में अत्यन्त शुष्क इस विषय को उपाध्यायजी ने उपन्यास की भाँति बहुत रोचक व सरल-सुबोध बना दिया है। यह निर्णय करना किसी भी विद्वान् के वश की बात नहीं है, कि उनकी कौनसी पुस्तक सर्वश्रेष्ठ है। सुधी पाठक इस ग्रन्थ को पढ़ें और इस पर चिन्तन और मनन करें।
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