कूर्मपुराण में कहा गया है कि किसी प्रकार भी इसकी कथा सुनने, इसका प्रवचन करने अथवा पाठ पढ़ने से मनुष्य धन्य (धनवान), यशस्वी तथा पुण्य का भागी हो जाता है और मृत्यु के अनन्तर मोक्ष को प्राप्त
करता है-
धन्यं यशस्यमायुष्यं पुण्यं मोक्षप्रदं नृणाम्।
पुराणश्रवणं विप्राः कथञ्चन विशिष्टः॥
कूर्मपुराण को अष्टादश पुराणों में पन्द्रहवें पुराण रूप में गिनाया गया है। यह कहा गया है कि इस कूर्मपुराण का सम्पूर्ण स्वरूप चार संहिताओं के रूप में स्थित था जो क्रमशः ब्राह्मी, भागवती, सौरी तथा वैष्णवी संज्ञक थी। वर्तमान समय में मात्र छः हजार श्लोकों वाला जो कूर्मपुराण उपलब्ध है उसको ब्राह्मी संहिता कहा गया है, जो कि चारों वेदों के समान महत्त्व वाला है
इस कूर्मपुराण का प्रथम बार प्रकाशन वैङ्कटेश्वर प्रेस बम्बई से हुआ था। तदनन्तर मनसुख राय मोर ५ क्लाइव रो कलकत्ता से इसका प्रकाशन हुआ था। इस पुराण का हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन सर्वभारतीय काशिराज न्यास, दुर्ग, रामनगर, वाराणसी से हुआ था। तदनन्तर इसका हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी से तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से भी इस पुराण का हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन हुआ था। गीताप्रेस गोरखपुर से भी कल्याण के विशेषांक (जनवरी
१९९७) में इस पुराण को हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित किया गया है।
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