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लीलावती

Leelawati

265.00

Subject : Sanskrit Literature
Edition : 2023
Publishing Year : 2023
SKU # : 36886-HP00-0H
ISBN : N/A
Packing : Paperback
Pages : 360
Dimensions : 14X20X6
Weight : 290
Binding : Paperback
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पुस्तक का नाम लीलावती
अनुवादक का नाम प्रो. रामचन्द्र पाण्डेय

गणित शास्त्र एक अत्यन्त गम्भीर एवं विस्तृत शास्त्र है। यद्यपि गणित शास्त्र के बीज वैदिक साहित्य में ही विद्यमान हैं किन्तु इनका मूर्त रूप देने एवं शास्त्र को परिष्कृत कर सर्वजन सुलभ कराने का श्रेय आर्यभट-ब्रह्मगुप्त-भास्कर प्रभृति मनीषियों को जाता है। इन आचार्यों के प्रयासों से गणित को व्यवहारिक रुप प्राप्त हुआ, तथा गणित को व्यवस्थित रूप से प्रतिपादित कर पठन-पाठन योग्य बनाया।

प्रस्तुत ग्रन्थ लीलावतीआचार्य भास्कर के द्वारा रचित गणित मणिमाला की एक मणि है। इस गणित में गणित के व्यवहारिक पक्ष को ही प्रस्तुत किया गया है।

आचार्य भास्कर द्वारा निर्मित लीलावती एक सुव्यवस्थित पाठ्य क्रम है। आचार्य भास्कर ने ज्योतिष शास्त्र के प्रतिनिधि ग्रन्थ सिद्धान्तशिरोमणि की रचना अल्पायु 36 वर्ष में की थी। इस ग्रन्थ के प्रमुख चार विभाग है
1)
व्यक्त गणित या पाटी गणित(लीलावती)
2)
अव्यक्त गणित(बीजगणित)
3) गणिताध्याय
4) गोलाध्याय
इस ग्रन्थ का प्रथम भाग ही लीलावती है। आचार्य भास्कर ने इस लघु ग्रन्थ में गहन गणित शास्त्र को अत्यन्त सरस ढ़ग से प्रस्तुत कर गागर में सागर की उक्ति को प्रत्यक्षतः चरितार्थ किया है। इकाई आदि अङ्क स्थानों के परिचय से आरम्भ कर अङ्कपाश तक की गणित में प्रायः सभी प्रमुख एवं व्यवहारिक विषयों का सफलतापूर्वक समावेश किया गया है। इस ग्रन्थ में काव्यगत भाव बेजोड़ है जैसे
पञ्चांशोलिकुलात् कदम्बमगमत् त्र्यंज्ञं शिलीन्ध्रं तयो-विर्विश्लेषस्त्रिगुणो मृगाक्षिकुटजं दोलायमानोऽपरः।
कान्ते! केतकमालतीपरिमलप्राप्तैककालप्रिया दूताहूत इतस्ततः भ्रमति खे भृङ्गोलि सङ्ख्या वद।।
अर्थात् भ्रमर कुल का 1/5 भाग कदम्ब पर, 1/3 शिलीन्ध्र पुष्प पर दोनों के अन्तर का तीन गुना 3 (1/3-1/4) =2/5 कुटज पर चले गये। हे कान्ते! 1 भ्रमर केतकी और मालती नामक अपनी पुष्प प्रेयसियों द्वारा प्रेषित सुगन्ध दूती से आकृष्ट होकर कभी मालती तथा कभी केतकी की ओर आकाश में ही भ्रमण करता रहा तो कुल भ्रमरों की सङ्ख्या बताओ।
इस प्रकार इस ग्रन्थ में ऐसे अनेकों उदाहरण है जिनमें गणित का गाम्भीर्य, सरस काव्यमयी भाषा एवं मनमोहक श्रृंगारिक भाव के कारण पाठक के मन को बोझिल नहीं होने देते है।

इस ग्रन्थ को प्रमुख रूप से तीन भागों में बाटा गया है। प्रथम खण्ड़ में परिभाषा, अङ्कों के स्थान, अभिन्न-भिन्न परिकर्माष्टक, गुणकर्मादि श्रेणी व्यवहार पर्यन्त अनेक व्यवहारिक गणितीय सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है।
द्वितीय खण्ड़ में क्षेत्रव्यवहार, त्रिभुज, चतुर्भुज, अनेकभुज वृत्त आदि व्यवहारों का सन्निवेश है।

लघु कलेवर युक्त इस ग्रन्थ में गणित के प्रायः सभी प्रारम्भिक व्यावहारिक विषयों का समावेश कर दिया है। जिससे यह पाठ्य ग्रन्थ के रूप में पूर्णतः उपर्युक्त है।

 

Weight 6415688 g

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