मनीषापञ्चक आदिशङ्कराचार्यविरचित पञ्चश्लोकात्मक एक लघु ग्रन्थ है। इस लघु कृति पर श्रीनृसिंहाश्रम की मधुमञ्जरी टीका उपलब्ध है। प्रस्तुत कृति में मूल संस्कृत श्लोकों का अन्वय, अन्वयार्थ एवं अनुवाद है जबकि टीका का अनुवाद एवं विमर्श किया गया है। चार श्लोकों के माध्यम से चारों महावाक्यों के अर्थ को स्पष्ट किया गया है एवं पञ्चम श्लोक महावाक्य के ज्ञान का फल है।
मनीषापञ्चक की कथा का आधार यह है कि एक दिन शङ्कराचार्य गंगास्नान कर के काशी विश्वनाथ के दर्शन करने के लिये जा रहे थे। अचानक मार्ग में चाण्डाल को सामने देखकर बोले यहाँ से जाओ-जाओ। चाण्डाल के उत्तर को सुनकर शङ्कराचार्य आश्चर्य चकित रह गये और उसी घटना को आधार बनाकर उसी क्षण उन्होंने यह ग्रन्थ लिखा। देखने में तो यह अतीव लघु है परन्तु जीवनपर्यन्त विचार एवं आचरण के लिये पर्याप्त है।
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