Vedrishi

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मद्गलपुराणं

Mudgalpuranam

1,500.00

SKU N/A Category puneet.trehan
Subject : Mudgalpuranam
Edition : 2021
Publishing Year : 2021
SKU # : 37047-CO00-0H
ISBN : 9788121804608
Packing : Hardcover
Pages : 844
Dimensions : 25.5 CM X 19 CM
Weight : 1516
Binding : Hardcover
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विश्व की समस्त संस्कृतियों ने यह पूर्णरूप से स्वीकार किया है कि भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन संस्कृति है। इस संस्कृति के मूल आधार वेद हैं। यह बेदराशि सबसे प्राचीन होने का दावा करती है। इसीलिये इसे मान्यता प्रदान करने हेतु अपौरुषेय माना गया है। इनके कर्ता स्वयं ईश्वर हैं तथा स्मर्ता स्वयं चतुर्मुख ब्रह्मा है, जैसा कि पाराशर स्मृति में कहा गया है कि

न कश्विद वेददाता स्याद् वेदस्मर्ता चतुर्मुखः। वेदो नारायणः साक्षात् स्वयंभूरिति सुश्रुमः।।

वेद साहित्य ईश्वर निर्मित है अथवा नहीं तथा ईश्वर निर्मित होना सम्भव भी है अथवा नहीं है, यह कहना तो अशक्य है, क्योंकि ईश्वर तो निराकार है, परन्तु वह ईश्वर किसी का प्रेरक तो हो सकता है, जिसे सन्देशवाहक कहा जा सकता है। इसीलिये प्रत्येक धर्मावलम्बी ने अपने-अपने धर्मग्रन्दों को ईश्वर निर्मित अथवा ईश्वर के संदेश माना है। मेरी दृष्टि में जिसका मुख्य कारण अपने-अपने धर्मग्रन्यों के अपरिमित महत्व को समाज में स्थापित करने का उद्देश्य है, ताकि समाज उस धर्म के सिद्धान्तों को ईश्वरीय आदेश मानकर स्वीकार करे और तदनुसार सुचारु रूप से सामाजिक व्यवस्था चल सके। जहाँ तक मेरा विचार है कि सभी धर्मों के नियम सिद्धान्त सामाजिक व्यवस्था को सही रूप से चलाने के लिए ही हैं। जो भी हो, वेदसाहित्य एक अपूर्व और अत्यन्त प्राचीन ज्ञान का महासागर है।

क्योंकि वेद ही भारतीय संस्कृति के मूल आधार हैं। वेद चार हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अवर्ववेद। सम्भवतः इन चार वेदों के आधार पर ही ब्रह्माजी को चतुर्मुख के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनके चारों मुख चार वेदों के प्रतीक हैं।

वैसे तो वेद चार ही हैं, चारों के उपवेद जो कि विशेष रूप से आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद और अर्थवेद तथा ब्राह्मण और आरण्यक ग्रंथ एवं उपनिषद साहित्य भी वैदिक साहित्य के दायरे में ही आते हैं, चारों वेदों का ही स्थान है तथा उन वेदों के ज्ञान के लिए शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष, ये च शास्त्र हैं।

विश्व वाङ्मय में वेदों से प्राचीनतर कोई भी साहित्य नहीं उपलब्ध होता है। अतः हिन्दू लोगों में सबसे अधिक वेदों की प्रामाणिकता को ही स्वीकार किया जाता है, परन्तु बारों वेदों के अर्थ को समझना सामान्य जन की बुद्धि के परे की बात है, इसीलिए प्राचीन मनीषियों ने स्मृति और पुराणों का प्रणयन किया।

इस साहित्य में वेदों और स्मृतियों के बाद पुराणों का ही आस्तिक जगत् में प्रामाण्य स्वीकार किया जाता है. क्योंकि वेद के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए ज्ञान, कर्म और उपासनाओं के सिद्धान्त पुराणों द्वारा अत्यन्त सरल भाषा में अनेकों निर्मल और सुन्दर कथाओं द्वारा सम्यक् प्रकार से समझाये गये हैं। अतः वेदों के अर्थ को जानने के लिए पुराणों का पूर्ण सहयोग है। इसलिए वेदों के अर्थ के विस्तार के लिए पुराणों के अनुशीलन की आवश्यकता है। यहा भावना महाभारत के आदिपर्व में प्रदर्शित की गयी है, यहाँ कहा गया है

Dimensions 9006.00 cm

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