पुस्तक परिचय
आयुर्वेद के शालाक्य तन्त्र में नेत्र चिकित्सा का बहुत बड़ा महत्त्व है। इस विषय पर प्राचीन युग में कई विशाल संहिताएं प्राप्त थीं. सुश्रुत के शालाक्य तन्त्र के लिखने से पूर्व इन संहिताओं का पूर्ण प्रचार था। सुश्रुत का वर्तमान नेत्र चिकित्सा का साहित्य उनके आधार पर संगृहीत था । लेखक ने वैदिक काल से लेकर अद्यावधिलब्ध नेत्र साहित्य का संक्षिप्त इतिहास देकर एक सुन्दर लुप्त साहित्य को प्रकाश में ला रखा है। साथ ही साथ प्राचीन साहित्य के अंश जो यत्र-तत्र बिखरे हुए थे. सभी को क्रमबद्ध करके विस्तृत रूप में इस आकार में प्रकाशित किया है। लेखक ने आयुर्वेदोक्त और आधुनिक नेत्र चिकित्सा में सामंजस्य दिखलाने की पूर्ण चेष्टा की है। जहां सामंजस्य नहीं दिखाई पड़ा है, वहां दोनों के विवरण को अलग-अलग रख दिया है।
यह पुस्तक विद्यार्थी व अध्यापक दोनों के लिए समान रूप से लाभकारी है। इस पुस्तक में नेत्र चिकित्सा पर एक विस्तृत व तुलनात्मक साहित्य उपस्थित करके चिकित्सक वर्ग के लिए अभिनव पथ प्रदर्शन का प्रयास किया गया है।
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