Vedrishi

Free Shipping Above ₹1500 On All Books | Minimum ₹500 Off On Shopping Above ₹10,000 | Minimum ₹2500 Off On Shopping Above ₹25,000 |
Free Shipping Above ₹1500 On All Books | Minimum ₹500 Off On Shopping Above ₹10,000 | Minimum ₹2500 Off On Shopping Above ₹25,000 |

निरुक्तभाष्यटीका

NIruktabhashyateeka

950.00

SKU N/A Category puneet.trehan
Subject : vedang, Yask, acharya, vedas
Edition : N/A
Publishing Year : N/A
SKU # : 37068-VG00-0H
ISBN : N/A
Packing : N/A
Pages : N/A
Dimensions : N/A
Weight : N/A
Binding : N/A
Share the book

पुस्तक परिचयः निरूक्तभाष्यटीका लेखकः- प्रो. ज्ञानप्रकाश शास्त्री, डा. नरेश कुमार

अर्थ की दृष्टि से वेदाङ्गों में निरूक्त का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि अर्थरहित वेदादि शास्त्रों का अध्ययन शुष्क वृक्ष के समान व्यर्थ जीवन वाला माना गया है। निरूक्तकार की दृष्टि में वाणी का प्रयोजन अर्थपरिज्ञान है। अर्थसहित वाणी को जानने वाला अमृतत्व को प्राप्त करता है।

यास्क के निरूक्त पर आज हमें दो वृत्तियाँ देखने को मिलती हैं, प्रथम है- आचार्य दुर्ग की निरूक्तवृत्ति तथा दूसरी है- स्कन्दस्वामी की टीका लाहौर में प्रकाशित हुई थी। यह टीका प्राचीन और पाण्डित्यपूर्ण है। इनके द्वारा रचित व्याख्या स्कन्दमहेश्वरवृत्ति के रूप में प्रसिद्ध है। दुर्गाचार्या की अपेक्षा यह कम विशद है, किन्तु सरल और स्पष्ट है। आज जो हमें निरूक्तभाष्य मिलता है, वह स्कन्दस्वामिमहेश्वरकृत माना जाता है।

आचार्य यास्क ने निघण्टु को समाम्नाय को नैघण्टुक, नैगम और देवताकाण्ड भेद से तीन प्रकार का विभाजन करते हुए नैगम तथा दैवत काण्ड के समस्त पदों का निर्वचन तथा उसके मन्त्रोदाहरण प्रस्तुत किये हैं, जबकि नैघण्टुक काण्ड के कुछ पदों का ही निर्वचन किया है तथा उनमें भी कुछ के मन्त्रोदाहरण प्रस्तुत किये हैं, परन्तु स्कन्दस्वामी ने उन सबका निर्वचन किया है। निघण्टु के तीन सौ पचास शब्द आचार्य यास्क ने निरूक्त में व्याख्यात कर दिए हैं और वहीं उनके उदाहरण भी प्रस्तुत कर दिये हैं। स्कन्दस्वामी ने उपर्युक्त के अतिरिक्त दो सौ पदों का और व्याख्यान किया है।

यह प्राचीन टीका प्रायः अलुप्त सी हो रही थी, अतः इसका संशोधित नूतन संस्करण एवं विस्तृत भूमिका निरूक्त के अध्येता विद्वानों एवं शोध छात्रों के लिए स्वागतयोग्य एवं प्रेक्षणीय है।

लेखक परिचयः प्रो. ज्ञानप्रकाश शास्त्री

प्रो. ज्ञानप्रकाश शास्त्री का जन्म दिनांक 9-3-1952 में हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गुरूकुल पद्धति के अनुसार उत्तर प्रदेश के एटा गुरूकुल में हुई। व्याकरणशास्त्र के अध्ययन के पश्चात उन्होने अपने शोधकार्य का क्षेत्र वैदिक साहित्य को अपनाया और इस पर उन्होने अनेक प्रकार से शोध कार्य किया। आचार्य यास्क और दुर्ग की निरूक्तवृत्ति पर एक वृहदाकार शोध प्रबन्ध लिखा, जो विश्वविद्यालय स्तर का प्रशंसनीय कार्य था।

लेखन की प्रवृत्ति और अभ्यास के नैरन्तर्य के कारण उन्होंने अनेक उच्चस्तरीय ग्रन्थ लिखे जिससे विद्वत समाज और शोधार्थियों को लाभ मिला। लेखक के निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैंः-

1. आचार्य यास्क का पदचतुष्टय सिद्धांत

2. आचार्य दुर्ग की निरूक्तवृत्ति का समीक्षात्मक अध्ययन

3. पाणिनीय प्रत्ययार्थ कोषः (तद्धित प्रकरण)

4. वैदिक साहित्य में जलतत्व और उसके प्रकार

5. वैदिक साहित्य के परिप्रेक्ष्य में निघण्टुकोष के पर्यायवाची नामों में अर्थ भिन्नता

6. वैदिक निर्वचन कोषः

प्रो. ज्ञानप्रकाश शास्त्री वर्तमान में गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के श्रद्धानन्द वैदिक शोध-संस्थान में निदेशक पद पर नियुक्त हैं।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “NIruktabhashyateeka”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recently Viewed

You're viewing: NIruktabhashyateeka 950.00
Add to cart
Register

A link to set a new password will be sent to your email address.

Your personal data will be used to support your experience throughout this website, to manage access to your account, and for other purposes described in our privacy policy.

Lost Password

Lost your password? Please enter your username or email address. You will receive a link to create a new password via email.

Close
Close
Shopping cart
Close
Wishlist