पुस्तक परिचयः- पाणिनीय धात्वनुक्रम-कोश (धातुसूत्रपाठसहित) लेखकः- अवनीन्द्र कुमार
भारत में संस्कृत भाषा के अध्ययन की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। भारतीय परम्परा में संस्कृत के वैज्ञानिक, दार्शनिक तथा वैयाकरण आदि तीनों पक्षों का विशद अध्ययन हुआ है। इसमें वैयाकरण पक्ष की अध्ययन-परम्परा अधिक प्राचीन तथा समृद्ध है। पाणिनीयकृत अष्टाध्यायी भाषाशास्त्रियों के अनुसन्धान का केन्द्र-बिन्दु रहा है।
पाणिनि के पञ्चांङ्ग व्याकरण का पदानुक्रम कोश बनाने की श्रृंखला में अष्टाध्यायी पदानुक्रमकोश के उपरान्त पाणिनीय धात्वनुक्रमकोश उसकी दूसरी कड़ी के रूप में सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। धातुकोशों की परम्परा स्वतंत्र रूप में समृद्ध नहीं जान पड़ती, मात्र पं. युधिष्ठिर मीमांसककृत संस्कृत धातुकोश कुछ अंशों में इस रिक्ति की पूर्ति करता है। प्रस्तुत कोश में यह प्रयत्न रहा है कि पूज्य मीमांसक जी के कोश को समय और आवश्यकता के अनुसार और अधिक उपयोगी किस रूप में बनाया जा सकता है। इस कोश में पहले अकारादिक्रम से अर्थसहित धातु (जैसा कि पाठ पाणिनीय धातुपाठ में मिलता है), फिर गणनाम एवं गण में धातु की संख्या, पाठान्तर (यदि है तो), परस्मैपद या आत्मनेपद का निर्देश, सेट् या अनिट् यथासम्भव या आवश्यकतानुसार प्रत्येक लकार अथावा मात्र लट् का क्रम से प्रथम पुरूष एकवचन का रूप, यदि धातु एक से अधिक गणों में है तो उन गणों के रूप भी, यत्र-तत्र भाववाच्य या कर्मवाच्य का लट् लकार प्रथम पुरूष का एकवचन का रूप, क्त, शतृ, शानच्, तथा क्त्वा-प्रत्ययान्त रूप, हिन्दी भाषा में प्रचलित अर्थ, अंग्रेजी के अर्थ, सोपसर्ग धातु का अर्थ अन्तर के साथ तथा अन्त में वेद में यदि कोई विशिष्ट रूप उपलब्ध हो तो वह दिया गया है। ग्रन्थ के अन्त में सम्पूर्ण धातुपाठ, जिसे आधार मानकर यह कोश बनाया गया है, भी दिया गया है। कोश की उपयोगिता का निर्णय विज्ञ पाठक ही करेंगे।
लेखक परिचयः-
प्रो. डा. अवनीन्द्र कुमार ने 40 वर्षों तक (1965-2005) अनवरत स्नातकोत्तर, एम. फिल., पी.एच.डी. कक्षाओं का मेरठ कौलिज, डी.ए.वी. कौलिज, देहरादून, गवर्नमेन्ट आर्टस एण्ड साइन्स कौलिज, दमण तथा दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन एवं शोधनिर्देशन किया। दिल्ली विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष रहने के उपरान्त मार्च 2005 में सेवानिवृत्त हुए।
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