भूमिका
“मंगलाचरणं शिष्टाचारात् फलदर्शानाच्द्रुतितश्चेति” (सांख्य दर्शन 5/1 ) 6 ( अर्थात् शिष्ट पुरुषों का आचार ( चलन) होने से, शुभ कर्म का शुभ फल प्राप्त होने से तथा वेदों में ईश्वर की आज्ञा होने से मनुष्य को सदा किसी भी कार्य के प्रारम्भ, मध्य एवं अन्त में शुभ कर्मों का अनुष्ठान करना चाहिए । ईश्वर का नाम स्मरण और | यास्क मुनि के शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ के अनुसार तो “यज्ञौ वै श्रेष्ठतमम् कर्म” अर्थात् यज्ञ ही सर्वश्रेष्ठ कर्म है। यज्ञ एवं सभी शुभ, सत्य कर्मों का उदय वेदों से ही हुआ है। जैसे मनु स्मृति श्लोक २/६ में कहा “वेदोऽखिलो धर्म मूलं” और गीता श्लोक ३/१५ ने कहा है “ब्रह्मोद्भवम्” । अतः बिना वेद सुने ठीक-२ कर्मों का ज्ञान, नहीं हो सकता । अतः यज्ञ करना चाहिए। कर्मों, पूजा, लेखन अथवा संसार के किसी भी शुभ कार्य में न्याय एवं पक्षपात रहित होना तथा प्रारम्भ से अन्त तक सदा बिना रोक टोक केवल एक रस, सत्य आचरण ही करना, मंगल (शुभ) आचरण कहलाता है। ईश्वर के समान एक अकेला मंगल पद सब वैदिक शुभ कर्मों का द्योतक है। जहाँ लेखनी और प्रवचन का भी प्रश्न आता है, वहाँ देखते हैं कि वेदों के ज्ञाता व्यास मुनि, ऋषि पाणिनि, कपिल मुनि आदि असंख्य ऋषियों की रचनाएँ – महाभारत, वाल्मीकि रामायण तथा उपनिषद् आदि भी प्रारम्भ, मध्य एवं अन्त तक न्याय, निष्पक्ष एवं सत्य भाषण से भरे पड़े हैं। अतः इन सबके लिए मंगल आचरण की क्या आवश्यकता है जबकि इन शुभ रचनाओं ने तो मंगलाचारण को धारण ही किया हुआ है। अतः गृहस्थ के किसी कार्य के प्रारम्भ में हम पूजा-पाठ, मंगलाचरण इत्यादि करते हैं और | तुरन्त बाद माँस-मदिरा, झूठ, छल-कपट, अन्याय आदि से युक्त | अनेक अशुभ कर्म करना प्रारम्भ कर देते हैं अथवा प्रायः आज के सन्त वेद विरुद्ध मिथ्या भाषण करते हैं, हँसी-मजाक, चुटकुलेबाजी अथवा संगीत पर नाचने-गाने को ही पूजा अथवा भक्ति कहते हैं। परन्तु इन कर्मों का वेदों में कोई प्रमाण नहीं है। अतः ऐसे मंगलाचरण को विद्वान लोग मिथ्या कर्म ही कहते हैं । अतः जैसे ऊपर कहा, ईश्वर के सत्य नाम जो वेद, शास्त्रों, उपनिषद इत्यादि में कहे हैं उनका प्रारम्भ में स्मरण अथवा यज्ञादि शुभ कर्म करना ही उत्तम मंगलाचरण है। अतः ईश्वर के अविनाशी नाम एवं ईश्वर का ध्यान करके पताञ्जल योग दर्शन की हिन्दी व्याख्या का दूसरा भाग प्रस्तुत करते हुए अत्यंत निःस्वार्थ आत्मिक शान्ति का अनुभव कर रहा हूँ। जिज्ञासुओं को यह विद्या प्रकाश करने में अति सहायक होगा, यह मेरी आत्मिक शुभ धारणा है।
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