आज पाखण्ड फिर देश में बढ़ रहा है। मूर्तिपूजा, अवतारवाद और गुरुडम खुलकर ताण्डव नृत्य कर रहे हैं। आज पुनः इस बात की आवश्यकता है कि इस पौराणिकता के गढ़ पर प्रबल प्रहार किया जाए। यह पुस्तक इस कार्य में अत्यन्त सहायक होगी।
इस ग्रन्थ को सम्पादन और प्रूफ सशोधन स्वामी जगदीश्वरानन्द जी ने बड़े परिश्रम से किया है। इस ग्रन्थ के प्रत्येक प्रमाण को मूल ग्रन्थ से मिलाया है। जहा प्रमाण छूट गये थे, वहां ढूंढकर लिख दिये गये हैं। जहां पते अशुद्ध थे, उन्हें शोध दिया गया है।
इस बार इस ग्रन्थ में मन्त्रों तथा श्लोकों की अनुकमणिका देकर इसकी उपयोगिता को बढ़ा दिया गया है। महर्षि दयानन्द की आलोचनाओं से घबराकर लोगों ने अपने ग्रथों को बदल डाला। यह आर्यसमाज की बहुत बड़ी विजय है।
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