पुस्तक का नाम – प्राचीन भारत में ज्योतिष एवं खगोल विज्ञान का विकास
लेखिका का नाम – डॉ़. अलकनन्दा शर्मा
भारत में प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि महर्षि तत्त्व के मर्म को समझने और उसमें विद्यमान गूढ़ रहस्यों को खोज निकालने को हमेशा तत्पर रहे हैं, ऐसा प्राचीन शास्त्रों का अध्ययन से ज्ञात होता है। इनकी यह विशेषता रही है कि वे सत्य के दृष्टा रहे हैं। सत्य के रहस्यों को खोज निकालना गहन तप व साधना का विषय है। इसी प्रकार कालगणना, खगोलविज्ञान आदि हमारे वेदों और ऋषियों की देन है। उन्होनें खगोल की कई आश्चर्यजनक घटनाओं का उल्लेख किया और उसका वर्णन किया। उन मनीषियों नें सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रों से काल-गणना और विभिन्न ग्रहों की दूरी, घूर्णन पथ आदि का विवरण अपने ग्रन्थों में किया। प्रस्तुत पुस्तक में अनेकों आकाशीय घटनाओं का ज्योतिषीय तत्त्वों के आधार पर वर्णन किया गया है। पुरातत्व में जहां भूगर्भ के अन्तर्गत वस्तुस्थिति एवं स्थापत्य, शिलालेखों, सिक्कों, प्रतीकों, भाषा-शैली, लिपि में उल्लेखित उत्पातों, भूकम्पों, मरुस्थलों तथा समुद्र के विकास व संकुचन क्रियाओं को इस पुस्तक में दिया गया है। इस पुस्तक में हिमयुग से लेकर मौर्य, हर्षकाल तक के ज्योतिषी विवरणों को उल्लेखित किया गया है तथा वेदों से लेकर आर्यभट्ट, वराहमिहीर, ब्रहमगुप्त, लल्ल आदि के सिद्धान्तों का परिचय दिया गया है। मन्दिर और वास्तुविज्ञान का विवरण भी प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है। प्राचीन ज्योतिष एवं खगोल विज्ञान को समर्पित इस पुस्तक से सभी को लाभान्वित होना चाहिए
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