पुस्तक का नाम – रचनानुवादकौमुदी
लेखक का नाम – डॉ. कपिलदेव द्विवेदी
इससे पूर्व प्रथम पुस्तक प्रारम्भिक रचनानुवादकौमुदी जिसमें प्रारम्भिक संस्कृत अध्येताओं के लिए सरल पद्धति से संस्कृत सीखने की सामग्री प्रस्तुत की गई है। उसी श्रेणी में द्वितीय पुस्तक रचनानुवाद कौमुदी है, जिसमें प्रारम्भिक रचनानुवादकौमुदी का परायण कर चुके संस्कृत के अध्येताओं के लिए शुद्ध संस्कृत लिखने, बोलने तथा अनुवाद करने की विधियों को सिखाया गया है। इस पुस्तक का भी उद्देश्य प्रारम्भिक रचनानुवाद कौमुदी के समान संस्कृत भाषा को सरल, सुबोध और सर्वप्रिय बनाना है। संस्कृत व्याकरण की कठिनाइयों को दूर कर सुगम मार्ग का प्रदर्शन करना है। संस्कृत भाषा अतिक्लिष्ट भाषा है इस लोकापवाद का समूल खण्ड़न करना है। किस प्रकार से संस्कृत भाषा से अपरिचित एक हिन्दी भाषा जानने वाला व्यक्ति 4 या 6 माह में सुन्दर, स्पष्ट और शुद्ध संस्कृत बोल सकता है। संस्कृत भाषा के व्याकरण और अनुवाद सम्बन्धी सभी अत्यावश्यक बातों का एक स्थान पर संग्रह तथा अनावश्यक सभी बातों का परित्याग किया गया है। अनुवाद और वाक्य रचना द्वारा सभी व्याकरण नियमों का पूर्ण अभ्यास कराया गया है।
इस पुस्तक में 60 अभ्यास दिये गये हैं। प्रत्येक अभ्यास दो भागों में विभक्त हैं। बाईं ओर प्रारम्भ में शब्दकोश है, जिसमें 25 नए शब्द हैं। तत्पश्चात् शब्दरूप, धातुरूप, कारक, समास, कृत् प्रत्यय आदि व्याकरण सम्बन्धी अंश दिया गया है। नियमों के उदाहरण आदि भी साथ ही दिये गए हैं। इस पुस्तक के प्रत्येक भाग में 25 नए शब्द हैं, अतः 60 अभ्यासों में 1500 शब्दों का शब्दकोष हो जाता है। प्रायः इतने ही शब्द कृत् प्रत्ययों आदि के द्वारा अन्य शब्दों के अभ्यास किये जा सकते हैं। इसप्रकार 3000 शब्दों का अभ्यास इस पुस्तक द्वारा किया जा सकता है।
यह पुस्तक बी.ए. और मध्यमा कक्षा तक के छात्रों के लिए संस्कृत अनुवाद, व्याकरण और निबन्ध के लिए सर्वथा पर्याप्त है।
आशा है कि प्रस्तुत संस्करण पाठकों और संस्कृत के विद्यार्थियों के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध होगा
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