आज ऋषि दयानन्द का नाम सर्वत्र प्रसिद्ध है। गतशती में जितने सुधारक हुए, उन सबकी अपेक्षा ऋषि का प्रभाव अधिक व्यापक एवं स्थायी है। उनकी उद्धार योजना सर्वतोमुखी थी। वैयक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रिय एवं जागतिक सभी हितों के उन्नत करने की उनकी प्रबल भावना ने उनके सद्विचारों को प्रौढ़ता एवं शक्ति प्रदान की और आज तक उनकी वह पावन भावना अपना कार्य अबाध रूप से कर रही है। ऐसे महामहिम महात्मा की जीवन घटनाओं से प्रत्येक सुधारप्रिय को परिचित होना चाहिए, इस भावना से प्रेरित होकर 'ऋषि-बोध-कथा' जनता के सम्मुख रखी जा रही है। इसमें गृहत्याग तक ऋषि जीवन की उन घटनाओं का वर्णन है जिनसे प्रेरणा पाकर ऋषि ने दृढ़ संकल्प करके घर का त्याग किया। धनीमानी, सम्पन्न घर में जन्म पाकर भी उस पर क्यों लात मारकर दयालजी धन-सम्पन्नता के स्थान में अकिंचन बनते हैं, इसका रहस्य आपको इस कथा में मिलेगा। –
लेखक को पौराणिक गर्त से निकाल कर वैदिक सौध पर लाने में ऋषि की जीवन-कथा का बहुत बड़ा हाथ है। अपनी उन्नति के पथ का प्रदर्शन करने वाले महामानव के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए ऋषि का वास्तविक स्वरूप प्रकाशित करने की भावना की पूर्ति का यह उपक्रम मात्र है। कोई विघ्न न हुआ तो ऋषि जीवन के सम्बन्ध में कुछ और पुस्तकें भी पाठकों के समक्ष उपस्थित की जाएंगी।
घटनाओं का शुष्क संकलन मात्र इसमें नहीं है। इसे उपयुक्त बनाने के लिए और भी सामग्री का उपयोग इसमें किया गया है।
महर्षि के अवदात अवदानों के पठन से अनेक महानुभावों का कल्पनातीत कल्याण हुआ है, भविष्यत् में भी ये दीपस्तम्भ का कार्य करते रहेंगे। इसलिये पुनः-पुनः एवं विविध प्रकार से इनका प्रसार होना चाहिए।
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