भारतीय दार्शनिक जगत् में सांख्यदर्शन का स्थान बहुत ऊंचा है। निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि यह दर्शनकाल की दृष्टि से अति प्राचीन है। सांख्य-प्रतिपादित सिद्धान्तों की व्याख्या के सम्बन्ध में दीर्घकाल से विचारकों में मतभेद चला आ रहा है। कतिपय मध्यकालीन विद्वानों की राय एवं धारणा रही है कि सांख्य निरीश्वरवादी है।
चिरकाल से यह अनुभव किया जाता रहा है कि सांख्य सिद्धान्तों के सम्बन्ध में एक निष्पक्ष एवं प्रामाणिक ग्रन्थ लिखा जाना चाहिए। आचार्य उदयवीर शास्त्री ने अनेक वर्षों के गहन अनुशीलन व शोध के पश्चात् ‘सांख्य सिद्धान्त ग्रन्थ लिखकर इस अभाव को दूर किया है। लेखक की मान्यता है कि कपिल सांख्य निरीश्वरवादी नहीं है।
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