संस्कृत स्वयं शिक्षक
लेखक- श्रीपाद दामोदर सातवलेकर
बिना किसी की सहायता के हिंदी जानने वाला व्यक्ति इस पुस्तक को पढ़ने से संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त कर सकता है |
दैनिक उपयोगी वाक्यों के अभ्यास से रुचिकर ढंग से संस्कृत सिखाने का प्रयास किया गया है |
पुस्तक के उत्तरार्ध में पंचतंत्र की सरल एवम् नीति प्रद कथाओं तथा महाभारत के श्लोकों द्वारा संस्कृत का अध्ययन अध्येता को सोत्साह प्रवृत करता है |
इस पुस्तक के माध्यम से कम समय में ही अध्यक्षता संस्कृत भाषा की पात्रता प्राप्त कर सकता है |
ग्रंथ परिचय ☀️
इस पुस्तक का नाम ‘ संस्कृत स्वयं – शिक्षक’ है और जो अर्थ इस नाम से विदित होता है वही इसका कार्य है । किसी पंडित की सहायता के बिना हिन्दी जानने वाला व्यक्ति इस पुस्तक के पढ़ने से संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त कर सकता है । जो देवनागरी अक्षर नहीं जानते , उनको उचित है कि पहले देवनागरी पढ़कर फिर पुस्तक को पढ़ें । देवनागरी अक्षरों को जाने बिना संस्कृत जानना कठिन है । बहुत से लोग यह समझते हैं कि संस्कृत भाषा बहुत कठिन है , अनेक वर्ष प्रयत्न करने से ही उसका ज्ञान हो सकता है । परन्तु वास्तव में विचार किया जाए तो यह भ्रम – मात्र है । संस्कृत भाषा नियमबद्ध तथा स्वभावसिद्ध होने के कारण सब वर्तमान भाषाओं से सुगम है । मैं यह कह सकता हूँ कि अंग्रेज़ी भाषा संस्कृत भाषा से दस गुना कठिन है । मैंने वर्षों के अनुभव से यह जाना है कि संस्कृत भाषा अत्यंत सुगम रीति से पढ़ाई जा सकती है और व्यावहारिक वार्तालाप तथा रामायण – महाभारतादि पुस्तकों का अध्ययन करने के लिए जितना संस्कृत का ज्ञान चाहिए , उतना प्रतिदिन घंटा – आधा – घंटा अभ्यास करने से एक वर्ष की अवधि में अच्छी प्रकार प्राप्त हो सकता है , यह मेरी कोरी कल्पना नहीं , परंतु अनुभव की हुई बात है । इसी कारण संस्कृत – जिज्ञासु सर्वसाधारण जनता के सम्मुख उसी अनुभव से प्राप्त अपनी विशिष्ट पद्धति को इस पुस्तक द्वारा रखना चाहता हूँ ।
हिन्दी के कई वाक्य इस पुस्तक में भाषा की दृष्टि से कुछ विरुद्ध पाए जाएँगे , परन्तु वे उस प्रकार इसलिए लिखे गए हैं कि वे संस्कृत वाक्य में प्रयुक्त शब्दों के क्रम के अनुकूल हों । किसी – किसी स्थान पर संस्कृत के शब्दों का प्रयोग भी उसके नियमों के अनुसार नहीं लिखा है तथा शब्दों की संधि कहीं भी नहीं की गई है । यह सब इसलिए किया गया है कि पाठकों को भी सुभीता हो और उनका संस्कृत में प्रवेश सुगमतापूर्वक हो सके । पाठक यह भी देखेंगे कि जो भाषा की शैली की न्यूनता पहले पाठों में है , वह आगे के पाठों में नहीं है । भाषा – शैली की कुछ न्यूनता सुगमता के लिए जान – बूझकर रखी गई है , इसलिए पाठक उसकी ओर ध्यान न देकर अपना अभ्यास जारी रखें , ताकि संस्कृत – मंदिर में उनका प्रवेश भली – भाँति हो सके ।
पाठकों को उचित है कि वे न्यून – से – न्यून प्रतिदिन एक घंटा इस पुस्तक का अध्ययन किया करें और जो – जो शब्द आएँ उनका प्रयोग बिना किसी संकोच के करने का यत्न करें । इससे उनकी उन्नति होती रहेगी ।
जिस रीति का अवलम्बन इस पुस्तक में किया गया है , वह न केवल सुगम है , परन्तु स्वाभाविक भी है , और इस कारण इस रीति से अल्प काल में और थोड़े – से परिश्रम से बहुत लाभ होगा ।
यह में निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि प्रतिदिन एक घंटा प्रयत्न करने से एक वर्ष के अन्दर इस पुस्तक की पद्धति से व्यावहारिक संस्कृत भाषा का ज्ञान हो सकता है । परन्तु पाठकों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि केवल उत्तम शैली से ही काम नहीं चलेगा , पाठकों का यह कर्तव्य होगा कि वे प्रतिदिन पर्याप्त और निश्चित समय इस कार्य के लिए अवश्य लगाया करें , नहीं तो कोई पुस्तक कितनी ही अच्छी क्यों न हो , बिना प्रयत्न किए पाठक उससे पूरा लाभ नहीं उठा सकते ।
☀️अभ्यास की पद्धति
( 1 ) प्रथम पाठ तक जो कुछ लिखा है , उसे अच्छी प्रकार पढ़िए । सब ठीक से समझने के पश्चात् प्रथम पाठ को पढ़ना प्रारम्भ कीजिए ।
( 2 ) हर एक पाठ पहले सम्पूर्ण पढ़ना चाहिए , फिर उसको क्रमशः स्मरण करना चाहिए , हर एक पाठ को कम – से – कम दस बार पढ़ना चाहिए ।
( 3 ) हर एक पाठ में जो – जो संस्कृत वाक्य हैं , उनको कंठस्थ करना चाहिए तथा जिन – जिन शब्दों के रूप दिए हैं , उनको स्मरण करके , उनके समान जो शब्द दिए हों , उन शब्दों के रूप वैसे ही बनाने का यत्न करना चाहिए ।
( 4 ) जहाँ परीक्षा के प्रश्न दिए हों , वहाँ उनका उत्तर दिए बिना आगे नहीं बढ़ना चाहिए । यदि प्रश्नों का उत्तर देना कठिन हो , तो पूर्व पाठ दुबारा पढ़ना चाहिए । प्रश्नों का झट उत्तर न दे सकने का यही मतलब है कि पूर्व पाठ ठीक प्रकार से तैयार नहीं हुए ।
( 5 ) जहाँ दुबारा पढ़ने की सूचना दी है , वहाँ अवश्य दुबारा पढ़ना चाहिए ।
( 6 ) यदि दो विद्यार्थी साथ – साथ अभ्यास करेंगे और परस्पर प्रश्नोत्तर करके एक – दूसरे को मदद देंगे तो अभ्यास बहुत शीघ्र हो सकेगा ।
( 7 ) यह पुस्तक तीन महीनों के अभ्यास के लिए है । इसलिए पाठकों को चाहिए कि वे समय के अन्दर पुस्तक समाप्त करें । जो पाठक अधिक समय लेना चाहे , वे ले सकते हैं । यह पुस्तक अच्छी प्रकार स्मरण होने के पश्चात् ही दूसरी पुस्तक प्रारम्भ करनी चाहिए ।
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