आदि सृष्टि में ईश्वर द्वारा मनुष्यों को मार्गदर्शन हेतु वेदों का ज्ञान दिया गया। उसी ज्ञान के आधार पर मनुष्यों ने अपनी व्यवस्थाओं और कर्तव्यों का निर्धारण किया। लगभग महाभारत काल तक कुपरम्पराएँ और कुसंस्कारों का अधिक प्रभाव न था किन्तु महाभारत काल से कुसंस्कारों के बीज पल्लवित होने लगे तथा आर्यावर्त की दुर्दशा हो गई। जिसके परिणाम स्वरूप अंधविश्वास, विदेशी आक्रमण, मतान्तरण आदि दोषों का प्रकोप होने लगा। आर्यजाति अनेकों पाखण्डों में लिप्त रहने लगी, अनेकों मतमतान्तरों की उत्पत्ति होने लगी। स्त्री और शुद्रों की दयनीय दशा आरम्भ हो गई। वेदों और शास्त्रों के उचित अध्ययन परम्परा का नाश होने लगा। वेदों के सच्चार्थ का लोप हो गया।
इस भयंकर परिस्थिति में मानव कल्याण के उद्देश्य से समय-समय पर अनेकों महापुरूषों का प्रादुर्भाव हुआ, जिनमें से एक स्वामी दयानन्द जी थे। स्वामी दयानन्द जी ने समाज सुधार और मानव उन्नति के उद्देश्य से सत्यार्थ प्रकाश की रचना की, इस ग्रन्थ की रचना का उद्देश्य प्रकट करते हुए, वे सत्यार्थ प्रकाश की भूमिका में लिखते है – “मेरा इस ग्रन्थ के बनाने का मुख्य प्रयोजन सत्य – सत्य अर्थ का प्रकाश करना है, अर्थात् जो सत्य है उसको सत्य और मिथ्या है उसको मिथ्या प्रतिपादित करना है।” यहाँ स्वामी जी ने अपने ग्रन्थ का उद्देश्य भलिभाँति प्रकट किया है, जिससे कि व्यक्ति सत्य को पहचान कर, असत्य का त्याग करें और जो भी असत्य पर आधारित मान्यताएँ है उनकों त्यागकर सत्य मार्ग को प्राप्त होवे। इसी विषय को ही स्पष्ट करते हुए भूमिका में अन्यत्र लिखते हैं कि “मनुष्य का आत्मा सत्यासत्य का जानने वाला है तथापि अपने प्रयोजन की सिद्धि, हठ, दुराग्रह और अविद्यादि दोषों से सत्य को छोड़कर असत्य में झुक जाता है। परन्तु इस ग्रन्थ में ऐसी बात नहीं रक्खी है और न किसी का मन दुखाना वा किसी की हानि पर तात्पर्य है, किन्तु जिससे मनुष्य जाति की उन्नति और उपकार हो, सत्यासत्य को मनुष्य लोग जानकर सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करें, क्योंकि सत्योपदेश के बिना अन्य कोई भी मनुष्य जाति की उन्नति का कारण नहीं है।”
इस कथन से स्पष्ट किया है कि ग्रन्थ में की हुई समीक्षाएँ पक्षपात से रहित, किसी मत विशेष के दोषों को दिखाने मात्र के लिए न करके सत्यासत्य के निर्णय के लिए एवं मानव कल्याण के लिए की गई है। जगत के कल्याण की भावना और विश्व एकता की भावना से ओतप्रोत हो कर, स्वामी जी भूमिका में आगे लिखते है – “यद्यपि आजकल बहुत से विद्वान प्रत्येक मतों में हैं, वे पक्षपात छोड़ सर्वतन्त्र सिद्धान्त अर्थात् जो-जो बातें सब के अनुकूल सब में सत्य हैं, उनका ग्रहण और जो एक दूसरे में विरुद्ध बातें हैं, उनका त्याग कर परस्पर प्रीति से वर्ते वर्त्तावें तो जगत् का पूर्ण हित होवे।” स्वामी जी द्वारा लिखी ग्रन्थ की भूमिका से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसका उद्देश्य समाज कल्याण और सत्य के उजागर करने का है।
इस ग्रन्थ की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
- इस ग्रन्थ में ब्रह्मा से लेकर जैमिनि मुनि पर्यन्त ऋषि-मुनियों के वेद – प्रतिपादित सारभूत विचारों का सङ्ग्रह है।
- वेदादि सच्छास्त्रों के अध्ययन बिना सत्य-ज्ञान की प्राप्ति सम्भव नहीं है। उनको समझने के लिए यह ग्रन्थ कुञ्जी का कार्य करता है।
- जन्म से मृत्यु पर्यन्त ऐहलौकिक एवं पारलौकिक समस्त समस्याओं को समस्याओं को सुलझाने के लिए, यह ग्रन्थ एकमात्र ज्ञान का भण्डार है।
- इस ग्रन्थ में ऋषि दयानन्द के अन्य सब ग्रन्थों का सार है।
- यह ऐसा ग्रन्थ है जो पाठकों को इस ग्रन्थ में प्रतिपादित सर्वतन्त्र, सार्वजनीन, सनातन मान्यताओं के परीक्षण के लिए आह्वान देता है।
- भारत के पतन के कारणों और उसके उत्थान के उपायों पर इस ग्रन्थ में पर्याप्त विवेचन है।
- इस ग्रन्थ में मिथ्या धारणा का खण्डन किया है।
- इस ग्रन्थ में कुल 377 ग्रन्थों के प्रमाण दिए गए हैं। जिसमें 1542 मन्त्रों एवं श्लोकों को लिखा गया है।
इस ग्रन्थ की विषय वस्तु का विवरण निम्न प्रकार है –
यह ग्रन्थ 14 समुल्लास में रचा गया है। इसमें 10 समुल्लास पूर्वार्द्ध और 4 उत्तरार्द्ध में बने हैं।
प्रथम समुल्लास – इसमें ईश्वर के ओङ्कारादि 100 नामों की व्याख्या सप्रमाण की गई है। प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रयुक्त मंगलाचरण का प्रकाश किया गया है।
द्वितीय समुल्लास – इस समुल्लास में बालकों को शिक्षा देने और उन्हें अंधविश्वासों से दूर रखने का उपदेश किया है।
तृतीय समुल्लास – इस समुल्लास में ब्रह्मचर्य, संध्याहोम, पठनपाठनविधि, कन्याशिक्षा और आर्षानार्ष ग्रन्थों का उल्लेख किया है।
चतुर्थ समुल्लास – इस समुल्लास में विवाह और गृहाश्रम व्यवहार का उल्लेख है, जिसके अन्तर्गत बालविवाह का खण्डन किया गया है।
पञ्चम समुल्लास – इस समुल्लास में वानप्रस्थ एवं संन्यासाश्रम का विवेचन किया है।
षष्ठ समुल्लास – इस समुल्लास में राजधर्म और राजव्यवस्था पर मन्वादि ग्रन्थों से प्रकाश डाला है।
सप्तम समुल्लास – इस समुल्लास में ईश्वर, वेद विषयक तथ्यों को लिखा गया है। इसमें मन्त्र और ब्राह्मण में से वेद किसकी संज्ञा है, इस पर समीक्षा की गई है।
अष्टम समुल्लास – इस समुल्लास में सृष्टि उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय विषय का वर्णन किया है। इसमें भूलोक भ्रमण के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है।
नवम समुल्लास – इस समुल्लास में विद्या और अविद्या का भेद स्पष्ट किया है। बन्ध, मोक्ष और पुनर्जन्म का विवेचन किया है। इसमें मोक्ष के बाद भी जन्म लेने का विधान किया गया है।
दशम समुल्लास – इस समुल्लास में आचार-अनाचार, भक्ष्य-अभक्ष्य विषयों की व्याख्या की गई है।
एकादश समुल्लास – इसमें आर्यावर्त्तीय मत मतान्तर का खण्डन-मण्डन किया है।
द्वादश समुल्लास – इसमें जैन-बौद्ध, चारवाकादि मतों का खण्डन मण्डन किया है।
त्रयोदश समुल्लास – यह ईसाई मत के विषय में है।
चतुर्दश समुल्लास – यह इस्लाम विषय पर है।
अन्त में स्वमन्तव्यप्रकाश लिखा है। जिसमें स्वामी जी ने प्रमाण-अप्रमाण, धर्म-अधर्म आदि शब्दों की विवेचना प्रस्तुत करते हुए, अपने मन्तव्य को प्रकाशित किया है।
इस ग्रन्थ के अध्ययन से लाभ –
इस ग्रन्थ के अध्ययन से मानव समाज को अनेक लाभ प्राप्त होंगे, जिनमें से कुछ निम्न प्रकार है –
- वैचारिक क्रान्ति की उत्पत्ति होगी, जिससे तर्क करने की क्षमता विकसित होगी।
- राजधर्म के स्वरूप का ज्ञान होगा।
- वर्ण व्यवस्था एवं आश्रम व्यवस्था के नियमों का ज्ञान होगा।
- सच्छास्त्रों का ज्ञान और उनके अध्ययन की प्रेरणा मिलेगी।
- भारतीय संस्कृति और इतिहास को समझने में सहायता मिलेगी।
- युवकों में बढती नास्तिकता की रोकथाम में उपयोगी ग्रन्थ है।
- अन्धविश्वास एवं पाखण्ड को चुनौति देने के उपाय प्राप्त होंगे।
- मनुष्यों में शान्ति, प्रेम की भावना विकसित होगी।
सत्यार्थ प्रकाश के क्रान्तिकारी प्रभाव – ये सत्य है कि सत्यार्थ प्रकाश के अध्ययन से जीवन में कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य पडता है, लेकिन यहाँ कुछ लोगों के जीवन में पडे़ प्रभावों का उल्लेख किया जाता है –
- सत्यार्थ प्रकाश के अध्ययन से बडे़-बडे़ मौलवियों की घरवापसी हुई है।
- इसको पढ़कर लाला लाजपतराय ने वकालत छोड़कर स्वतन्त्रता आन्दोलन में सहयोग दिया।
- तलपडे़ जी इस ग्रन्थ और ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के अध्ययन से प्रचीन विज्ञान पर अनुसंधान करने लगे।
- इस ग्रन्थ के अध्ययन से पंडित लेखराम जी अपने मरते बच्चे को भी छोड़कर, मुस्लिम होने जा रहें लोगो को बचाने निकल पडे और ट्रेन न रूकने पर उसमें से छलांग लगा दी और उन्हें मुस्लिम होने से बचा लिया।
- जिसे पढ़कर पण्डित गुरूदत्त विद्यार्थी आर्य समाज के प्रचार-प्रसार में लग गए।
- मुंशीराम से स्वामी श्रद्धानन्द होकर, शुद्धिकरण के कार्यों में लग गए।
सत्यार्थ प्रकाश और स्वामी दयानन्द के विषय में महापुरुषों और प्रमुख व्यक्तियों के कथन –
- सत्यार्थ प्रकाश ने न जाने कितने असंख्य व्यक्तियों की काया पलट की होगी – स्वामी श्रद्धानन्द
- यदि सत्यार्थ प्रकाश की एक प्रति का मूल्य एक हजार रूपया होता तो भी मै उसे खरीदता – गुरूदत्त विद्यार्थी
- मैंने सत्यार्थ प्रकाश पढा। इससे तख्ता पलट गया। सत्यार्थ प्रकाश के अध्ययन ने मेरे जीवन के इतिहास में एक नवीन पृष्ठ जोड़ दिया।
- युग निर्माण तथा चतुर्मुखी प्रगति की भावना से प्रणीत यह दिव्य ग्रन्थ एक महान स्तम्भ है, जिसका निर्माण महर्षि दयानन्द ने सर्वप्रथम सम्पूर्ण मानव समाज की उन्नति के लिए किया – डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
- सत्यार्थ प्रकाश के महत्त्व को कम करने का अर्थ है वेदों के बहुमूल्य सार प्रतिष्ठा व मूल्यों को कम किया जाना। – सी.एस.रंगास्वामी अय्यर
- हिन्दू जाति की ठंडी रगों में उष्ण रक्त का संचार करनेवाला यह ग्रन्थ अमर रहे, यह मेरी कामना है। सत्यार्थ प्रकाश की विद्यमानता में कोई विधर्मी अपने मजहब की शेखी नहीं मार सकता है। – विनायक दामोदर सावरकर
- सत्यार्थ प्रकाश स्वामी दयानन्द की सर्वोत्तम कृति है – मौलाना मुहम्मद अली
अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस कालजयी ग्रन्थ का अध्ययन अवश्य करना चाहिए तथा अपने जीवन को श्रेष्ठता की ओर अग्रसर करना चाहिए।
Reviews
There are no reviews yet.