ग्रन्थ की विशेषताएँ
१. शास्त्रीय अध्ययन के काल में अनेकों विषय या स्थल अस्पष्ट, जटिल, सन्दिग्ध और भ्रमोत्पादक प्रतीत होते हैं। ऐसे ही कुछ प्रमुख विषयों या स्थलों का स्पष्टीकरण प्रबल प्रमाणों के साथ इस ग्रन्थ में किया गया है।
२. वेदमन्त्रों के अर्थ को जानने में देवता के समान ऋषि और छन्द भी उपयोगी हैं, ऐसा प्राचीन आचार्यों का मत है। पर वेदार्थ में ऋषि एवं छन्द किसप्रकार या किसरूप में उपयोग हो सकते हैं, इसका प्रायोगिक स्पष्टीकरण हमें कहीं नहीं मिलता है। इस विषय का स्पष्टीकरण शास्त्रीय दृष्टिकोण से एवं अकाट्य युक्तियों से इस ग्रन्थ में प्रथमवार एक नयी दृष्टि से किया गया है।
३. वेदमन्त्रों में छन्द की दृष्टि से अक्षर नियत संख्या से न्युनाधिक देखे जाते हैं। इस कमी को दूर करने के
लिए ऋग्वेदादि संहिता ग्रन्थों का संशोधन करना चाहिए या नहीं? इसका भी समाधान शास्त्रीय प्रमाणों एवं युक्तियों
से पहलीवार इस ग्रन्थ में दिया गया है। ४. संस्कृत आदि भाषाओं के गूढ आशयों (अर्थों) को जानने में क्या-क्या साधन हो सकते हैं? इसकी भी
चर्चा इस ग्रन्थ में की गयी है।
५. आयुर्वेद किस वेद का उपवेद है? इसका भी प्रामाणिक समाधान प्रस्तुत किया गया है।
६. यास्कीय-निर्वचन-सिद्धान्तों का नये दृष्टिकोण से विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
७. ऋषि-मुनियों के युग में पर्वो (त्योहारों) का क्या स्वरूप रहा होगा? इसका भी शास्त्रीय सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य में स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया गया है।
८. शिक्षाशास्त्र के अनेकों तत्त्वों का प्रतिपादन प्रामाणिक एवं विस्तृतरूप से किया गया है।
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