यदि मृत्यु जन्म का मूल है तो उसे मृत्यु नहीं कहना चाहिए और हम किसी मृत्यु की कल्पना भी नहीं कर सकते जिसके पश्चात् जीवन न हो। निःसंदेह मृत्यु का अर्थ है बिछुड़ना, केवल अपने मित्रों, प्रिय साथियों, भौतिक सम्पत्तियों और वातावरण से ही नहीं, वरन अपने निकटतम सहयोगी, अपनी स्थूल ज्ञानेन्द्रियों, यहाँ तक कि अपने भौतिक शरीर से भी बिछुड़ने का नाम है मृत्यु।
हमारी मृत्यु होगी। मृत्यु के पश्चात क्या बनेगा? प्रश्न महत्त्वपूर्ण है. रोचक भी है और आवश्यक भी। यह हमारे वर्तमान और भावी जीवन को भी प्रभावित करता है। इसे व्यर्थ समझ कर छोड़ा नहीं जाना चाहिए। आईए पूरे बुद्धिबल से इस पर विचार करें।
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