यह पुराणत्नी संस्कृत विद्यामें होनेके कारण सर्व साधारण इनके रहस्योंको नहीं समझ सकते। यही विचार कर इनका टीका सर्वसाधारणके समझने योग्य
हिन्दी भाषामें शंका समाधानके सहित होना परम आवश्यक है और हमारे परम माननीय ज्येष्ठ भाता पण्डित ज्वालाप्रसादजी मिश्रने श्रीमद्भागवत, हरिवंश, शिव पुराण आदि कई पुराणोंका इसी प्रकार टीका भी किया है और हमने जिस पुराण का टीका किया है, इसकी शैली भी भातृवर्यके टीकेके अनुसार रक्खी है और एकवार इस टीकेको प्रकाश होनेसे पहिले उनके दृष्टिगोचर भी करदिया है। जिसका टीका करनेमें हम प्रवृत्त हुए हैं, यह पुराणमें सातवां पुराण मार्कण्डेय नामक है, इसमें महाभारतकी अनेक शंकाओंका समाधान तथा भारतवर्ष- की अनेक सुरीतियोंके गुप्त रहस्य, अनेक प्रकार की शिक्षा, उपदेश, बालकोंकी सुरक्षा, उनको सुयोग्य बनाना, अर्थ, धर्म, काम, मोक्षादि चारों पदाथोकी प्राप्तिके
उपाय, ब्रह्मविद्या, ईश्वरभक्ति, पातिव्रत्यधर्म, स्त्रियोंके सुधारके उपाय, वर्णाश्रमके धर्म, विद्युत्, अग्निविद्या आदि ऐसे ऐसे अद्भुत विषय इसमें वर्णन किये हैं कि, देखते ही मनुष्यका अन्तःकरण परम आनन्दित होजाता है। इस टीकेके निर्माण करनेम कहीं कहीं गूढ विषयांका विवरण तथा शंकित स्थलोंका समाधान भलीभाँतिसे किया है; अक्षरार्थ, भावार्थको बहुत स्पष्ट दिखला दिया है । साथमें महामाया भगवती दुर्गा। चरित्रका टीका भी बडे विस्तारित अर्थों में किया है।
इस ग्रंथके टीका करनेमें मेरे परम मित्र चन्दौसीनिवासः पण्डित मुन्नालालजीशर्मा और मुरादाबादनिवासी पण्डित कन्हैयालालजी तंत्रवैद्यने विशेष उत्साह दिलाया था, अत एव उक्त महाशयोंको अन्तःकरणसे धन्यवाद देकर आशा करताहूं कि वह सदेव इसी प्रकार मुझको उत्साहित करते रहेंगे । अब यह ग्रंथ सब प्रकारसे अलंकृत कर सब प्रकारके स्वत्वसहित परम माननीय जगद्विख्यात “श्रीवेङ्कटेश्वर” (स्टीम्) यन्त्रालयाध्यक्ष सेठजी भीखेमराज श्रीकृष्णदासजी महोदयको समर्पण किया है जो सब प्रकारके सन्मानसहित नित्य हमारे उत्साहको बढ़ाते रहते हैं ।
पाठक महाशयोंसे प्रार्थना है कि, हमने कई पुराणोंको मिलाकर इस पुराणका टीका निजमतिके अनुसार किया है, यदि आप लोग इसमें कहीं भूल पावें तो कृपाकर सुधार ले, कारण कि, सर्वज्ञ परमेश्वर है ।
परन्तु इसके पाठसे आपको अनेक विषयोंमें
जेहि मारुत गिरिमेरु उडाहीं। कहहु तूल केहि लेखे माहीं ॥ भगवद्भक्तिकी प्राप्ति होगी, ऐसी मुझे दृढ आशा है।
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