इस पुस्तक का हृदय “अनुवाद की सरलतम विधि” कहा जा सकता है। संस्कृत अनुवाद प्रमुख पाँच लकारों में क्रमशः अपेक्षित नियमों को समझाते हुए दिया गया है। मात्र पन्द्रह दिनों में संस्कृत अनुवाद सिखाना इस अंश का प्रमुख उद्देश्य है। छात्रों की कठिनाई को दृष्टिगत रखते हुए अभ्यासों में हिन्दी वाक्यों के बाद उनका संस्कृत रूपान्तरण दिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य बिना किसी अन्य व्यक्ति के सहयोग से छात्रों द्वारा किए गए अनुवाद में गलतियों की जानकारी’ प्रदान करना है। 1
अन्त में परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी कुछ संस्कृत निबन्धों एवं छन्दों का उल्लेख किया गया है तथा परिशिष्ट में इस पुस्तक में आए सूत्रों की अकारादिक्रम से सूची दी गई है। वस्तुतः यह पुस्तक सरलता का ध्यान रखते हुए प्रौढ़ संस्कृत व्याकरण-शिक्षा की दृष्टि से प्रस्तुति मात्र है।
आशा है इसके पूर्व संस्करण के समान यह संस्करण भी लोकप्रिय होगा। साथ ही प्रिय छात्र-छात्राओं एवं आदरणीय विद्वान् महानुभावों से मेरा विनम्र निवेदन है कि इस पुस्तक के अध्ययन में जो भी कठिनाई अनुभव हो अथवा उनका कोई सुझाव हो तो वे उसे अवगत कराने का कष्ट करें।
तदनन्तर सर्वप्रथम मैं उन विद्वानों के चरणों में श्रद्धावनत हूँ, जिनकी विद्वत्तापूर्ण संरचनाओं के सहयोग से इस पुस्तक के लेखन में मुझे सहयोग प्राप्त हुआ। साथ ही इस पुस्तक की प्रेरणास्रोत मेरी सहधर्मिणी डॉ० प्रतिमा शास्त्री, व्याख्याता – संस्कृत, राजकीय महाविद्यालय, बांसवाड़ा के प्रति भी भूरिशः धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने अनेक स्थलों पर नूतन-दृष्टि प्रदान करके अपना अमूल्य सहयोग मुझे प्रदान किया।
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