प्राक्कथन – लेखकः आचार्य प्रियव्रत शर्मा
हिन्दी व्याख्याकारः डा. अनन्तराम शर्मा
ग्रन्थ का नाम – सुश्रुत संहिता
हिन्दी व्याख्याकार – डा. अनन्तराम शर्मा
भारत में प्राचीन काल से ही आयुर्वेद की परम्परा चली आ रही है। केवल भारत ही नहीं ग्रीक, मिस्र, मेसोपोटामिया, चीन, जापान आदि प्राचीन सभ्यताओ में भी आयुर्वेद का प्रयोग होता आया है। इसमें शरीर और मन की चिकित्सा के उपाय वर्णित होते हैं। ऋषि दयानंद जी और शौनक (चरणव्यूह) के अनुसार आयुर्वेद ऋग्वेद का उपवेद है तथा सुश्रुत संहिता आदि आचार्यों के अनुसार अथर्ववेद का उपवेद है। दोनों वेदों में आयुर्वेद का उल्लेख है इसलिए दोनों से ऋषियों ने आयुर्वेद की महान प्रणाली को विकसित किया होगा। ऋषि दयानन्द जी ने अपने पठन-पाठन विधि में सुश्रुत और चरक संहिता को आर्ष ग्रन्थ माना है तथा जहाँ भी उन्होंने आयुर्वेद का प्रमाण दिया है वहाँ उन्होने सुश्रुत संहिता के प्रमाण उद्धृत किये हैं। अत: सुश्रुत संहिता एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।
इस ग्रन्थ में शरीर संरचना का, नेत्र, कर्ण आदि की सूक्ष्म संरचना का विशद वर्णन है। यह ग्रन्थ शल्य चिकित्सा का प्रधान ग्रन्थ है तथा इसमें शल्य चिकित्सा का उल्लेख और उसमें काम आने वाले उपकरणों का वर्णन है।
शल्य चिकित्सा के अलावा इसमें अन्य योगों का भी वर्णन मिलता है जैसे –
चिकित्सा स्थान में रसायन और वाजीकरण का, उत्तरतन्त्र में शालाक्य, कौमारभृत्य और भूतविद्या तथा कल्पस्थान में अगदतन्त्र निहित हैं। सुश्रुत में द्रव्यों और व्याधियों के वर्णन से स्पष्ट है कि सुश्रुत की शैली वैज्ञानिक और वस्तु-परक है।
प्रस्तुत व्याख्या हिन्दी भाषा में होने के कारण यह हिन्दी भाषी अध्येताओं के लिए विशेष लाभकारी सिद्ध होगी।
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