पुस्तक का नाम – स्वाध्याय – सन्दीप
लेखक का नाम – स्वामी वेदानन्द तीर्थ
वेदों का ज्ञान परमात्मा ने आदि सृष्टि में मानवमात्र के कल्याण के लिए दिया था। अग्नि, वायु, आदित्य और अङ्गिरा जिन ऋषियों के हृदय में परमात्मा ने वेदज्ञान का प्रकाश किया था, उन्होनें प्रभु – कृपा से उनका अर्थ जानकर अन्यों को जनाया।
वेदों के महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए महर्षि कणाद ने लिखा –
बुद्धिपूर्वा वाक्यकृतिर्वेदे – वै.द. 6.1.1
अर्थात् वेद की रचना बुद्धिपूर्वक है।
महर्षि व्यास ने प्रतिपादित किया है –
अनादिनिधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयंभुवा।
आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः।। – महा. शा. 232.24
अर्थात् सृष्टि के आदि में स्वयंभू परमात्मा ने वेदरूपी ऐसी दिव्य वाणी प्रकट की जो नित्य है और जिससे संसार की सारी प्रवृत्तियाँ चलती है।
महर्षि मनु ने तो वेद न पढ़ने वाले को शुद्र तक की संज्ञा दे दी है। इसीलिए महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने आर्यसमाज के तीसरे नियम में लिखा है –
वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है, वेद का पढ़ना – पढ़ाना और सुनना – सुनाना सब आर्यों का परम कर्तव्य है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती से प्रेरणा पाकर जिन व्यक्तियों ने वेद का गहन अध्ययन किया उनमें स्वामी वेदानन्द (दयानन्द) तीर्थ का नाम बहुत अग्रगण्य है। उनके लिखे प्रस्तुत ग्रन्थ में उन्होने वेद मन्त्रों की इस प्रकार से व्याख्या की है कि मानों वेद मन्त्रों से ही जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान हो जाता है। पुस्तक के आरम्भ में वेद परिचय में वेदों के सम्बन्ध में अनेको लेखों जिनमें ब्राह्मण ग्रन्थ और शाखाओं पर भी विचार प्रकट किया गया है। पुनः वैदिक स्वदेश भक्ति और राष्ट्र रक्षा के लिए वैदिक साधनों का भी विवरण प्रस्तुत किया गया है। वेद मन्त्रों की व्याख्या के अन्त में सावित्री प्रकाश जिसमें ओम और गायत्री मन्त्र के विषय में सप्रमाण लिखा गया है।
आशा है कि पुस्तक विद्वानों और सभी प्रकार के पाठकों को लाभान्वित करेगी।
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