पुस्तक का नाम – स्वामी दयानन्द और स्वामी विवेकानन्द एक तुलनात्मक अध्ययन
लेखक का नाम – डॉ. भवानीलाल भारतीय
उन्नीसवीं शताब्दी में आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द ने धर्म, समाज, संस्कृति तथा राष्ट्र के क्षेत्र में सर्वतोमुखी चेतना जगाने के लिए अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत किये।
उसी काल में स्वामी विवेकानन्द ने वेदान्त से अनुप्राणित होकर देश-देशान्तर में हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता का शंखनाद किया तथा भारतीय आर्य संस्कृति की सार्वजनीनता का प्रतिपादन किया।
दोनों ने अपने–अपने क्षेत्रों में कार्य किये तथापि दोनों में अत्यन्त अन्तर भी था। जहां स्वामी दयानन्द की विचारधारा सुसंगत, तर्कपूर्ण तथा इस देश की परम्पराप्राप्त वैदिक विचार-सरणि से अनुमोदन प्राप्त करती चलती है, वहां स्वामी विवेकानन्द की विचारधारा यत्र-तत्र अन्तर्विरोध ग्रस्त, पश्चिमाभिमुख तथा वदतोव्याघात पूर्ण है। स्वामी विवेकानन्द के विचारों में कितना अन्तर्विरोध है, उनके कथन कितने वदतोव्याघातपूर्ण है, इसकी पुष्टि Teachings of Swami Vivekanand नामक पुस्तक से हो जाती है।
प्रस्तुत पुस्तक में स्वामी दयानन्द जी और स्वामी विवेकानन्द जी का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। इस पुस्तक में दयानन्द जी और विवेकानन्द जी के विचारों में जो समाज सुधार को लेकर प्रबल विरोध और असहमति थी, उसका वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में दोनों की वेद विषयक मान्यताओं, दार्शनिक मान्यताओं, ईश्वर विषयक मान्यताओं, मूर्तिपूजा विषयक मान्यताओं, विभिन्न मतों के प्रति दृष्टिकोण, वर्णव्यवस्था, शास्त्र और धर्म विषयक मान्यताओं में अन्तर को दर्शाया गया है। दोनों में परस्पर अन्तर के अतिरिक्त वैचारिक समानता भी पुस्तक में दिखाई गई है।
स्वामी विवेकानन्द के राष्ट्र विषयक विचारों की इसमें परख की गई है। दोनों ही समाज सुधारकों के व्यक्तित्व का विश्लेषण उत्तम ढंग से इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।
आशा है, पाठक इस ग्रन्थ का अध्ययन उसी मनोवृत्ति और दृष्टिकोण से करेंगे, जिस दृष्टिपथ में रख इसे लिखा गया है।
प्राप्ति स्थल
वेद ऋषि
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