पुस्तक का नाम – तनाव से मुक्ति
लेखक का नाम – सन्दीप आर्य
“धर्मार्थकाम मोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम्” अर्थात् स्वस्थ व्यक्ति ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करने में सफल होता है। इसीलिए मनुष्य को सदा स्वस्थ रहने का प्रयत्न करते रहना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य को शरीर से स्वस्थ रहना चाहिए और मन से भी स्वस्थ रहना चाहिए। स्वास्थ्य की परिभाषा करते हुए आयुर्वेद ग्रन्थों में लिखा है कि – समदोषः समाग्निश्च समधातु मलक्रियः। प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते।। अर्थात् शरीर के वात, पित, कफ आदि सम अवस्था में रहें, पाचन तन्त्र ठीक हो, धातुएँ पुष्ट हों, मल-मूत्रादि की क्रिया जब ठीक-ठीक हो तो वह शारीरिक दृष्टि से ठीक है, तथा मन से जो व्यक्ति प्रसन्न रहता है वह मानसिक दृष्टि से स्वस्थ है। यदि कोई व्यक्ति प्रसन्न रहता है तो वह मानसिक दृष्टि से स्वस्थ है। यदि कोई व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से ठीक नहीं तो वह शारीरिक रोगी और मानसिक दृष्टि से ठीक नहीं तो वह मानसिक रोगी कहलाता है। शारीरिक रोगियों की चिकित्सा के लिए तो आधुनिक चिकित्सा में अनेकों प्रयत्न हो रहे हैं, तथा मानसिक रोगों को दूर करने के लिए प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक ग्रन्थों में विशेष जीवन शैली की व्याख्या है, जिस पर चलकर हम हमारे मन के दोषों को दूर कर सकते हैं। मनुष्य अपने मिथ्या अहंकार व राग-द्वेष से ग्रस्त होकर स्वयं अशान्त और बैचेन हो रहा है और मानसिक तनाव में फसकर अनेक दुःखों को झेलता रहता है तथा अनिन्द्रा, डिप्रेशन आदि बीमारियों से घिरकर छटपटाता रहता है। आज के भौत्तिकवाद की चकाचौंध की अन्धी दौड़ में मानव किस प्रकार मानसिक तनाव से रहित होकर सच्ची सुख व शान्ति प्राप्त कर सकता है इस विषय में श्री संदीप आर्य ने विविध ग्रन्थों के अध्ययन के द्वारा प्रस्तुत पुस्तक “तनाव से मुक्ति” लिखी है। इसमें प्राचीन ग्रन्थों के प्रमाणों से तनाव को दूर करने के उपाय ही नहीं बताया, परन्तु आत्मा को भी स्वस्थ सुन्दर बनाकर परमात्मा के साथ योग करने की पद्धति का मार्गदर्शन किया गया है। आशा है कि स्वाध्यायशील पाठकगण इसे पढ़कर अवश्य ही स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करेंगे।
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