पुस्तक का नाम – त्रिभाषी कोषः
लेखक का नाम – ओङ्कार
प्रत्येक व्यक्ति लोकभाषा से संस्कृत तथा अंग्रेजी भाषाओं में अनुवाद करते समय, संस्कृत तथा अंग्रेजी को लोकभाषा में अनुवाद करते समय अनेक कठिनता होती है। इन तीनो भाषाओं का आपस में एक – दूसरे में अनुवाद का कोई सरल साधन अभी तक उपलब्ध नहीं था। तीनों भाषाओं का शब्द कोष तो सम्भवतः दृष्टिपथ में नही आया।
इस अभाव की पुर्ति प्रस्तुत त्रिभाषी कोषः द्वारा आचार्य ओङ्कार जी द्वारा की गई है।
इस कोष में सर्वप्रथम अकारादि क्रम से लोकभाषा (प्रचलित हिन्दी, उर्दु, फारसी) के जो प्रचलित शब्द है, उनका चयन करके उन शब्दों का संस्कृत तथा अंग्रेजी में पर्यायवाची शब्दों का संकलन किया गया है। जिनसे हिन्दी के प्रचलित शब्दों के ज्ञाता व्यक्ति संस्कृत तथा अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे।
इस कोष के अन्त में दो परिशिष्ट दिये हैं। प्रथम परिशिष्ट “महाक्षपणक विरचिता अनेकार्थध्वनिमञ्जरी नाम्नी नानार्थ संग्रह कोष है।”
द्वितीय परिशिष्ट में उपसर्गों के अर्थ दिये गये हैं। इसमें ‘दुस्’ और ‘दुर्’ को अर्थ की दृष्टि से एक मानकर अर्थ दिये हैं। इसी प्रकार ‘निस्’ और ‘निर्’ अभिन्न मानकर बीस उपसर्गों के अर्थ उदाहरण सहित दिये हैं।
इस कोष के शब्द संकलन में प्रचलित भाषा के शब्दों मानक के रूप में स्वीकार किया है, चाहे वह शब्द अरबी, फारसी, ब्रज, अंग्रेजी किसी भी भाषा के क्यों न हो।
शब्दार्थ संकलन में अनेकों उपलब्ध कोशो की सहायता ली गई है।
आशा है कि इस त्रिभाषी कोषः से पाठकगण अत्यन्त लाभान्वित होंगे।
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