ग्रन्थ का नाम – उपनिषद् रहस्य
व्याख्याकारों के नाम – महात्मा नारायण स्वामी जी महाराज
पण्डित भीमसेन शर्मा
‘धर्मे रहस्युपनिषत्स्यात्’ ‘षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु’ धातु से उप तथा नि उपसर्ग पूर्वक क्विप् प्रत्यय होकर उपनिषद् शब्द निष्पन्न होता है। उपनिषद उसे कहते हैं जिससे ब्रह्म का साक्षात्कार किया जा सके उसे उपनिषद कहते हैं। उपनिषदों में प्रायः ब्रह्मविद्या का ही प्रतिपादन किया गया है, जिससे उपनिषद् को अध्यात्म विद्या भी कहते हैं।
उपनिषद् ग्रन्थ अध्यात्म गगन के जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं। ये हमें ज्ञान का प्रकाश प्रदान करते हैं। इनको पढ़कर व्यक्ति अपने प्रति कठोर तथा दूसरों के प्रति उदार बन जाता है। इनसे उसे शाश्वत शान्ति प्राप्त हो जाती है। उपनिषद् ब्रह्मविद्या के मूलाधार होने से श्रवण, मनन, निदिध्यासन और आत्म साक्षात्कार परम्परा पर आधारित हैं। ब्रह्मविद्या के जिज्ञासु ब्रह्मवेत्ता ऋषियों के पास समित्पाणि होकर जाते रहे हैं।
उदाहरणार्थ – नचिकेता यम के पास, सुकेशा, सत्यकाम, सौर्यायणि, कौसल्य, भार्गव, कबन्धी महर्षि पिप्पलाद के पास, शौनक महर्षि अंगिरा के पास, भृगु वरुण के पास, दृप्तबालाकि अजातशत्रु के पास तथा जनक याज्ञवल्क्य के पास जाकर ब्रह्मज्ञान प्राप्त करते रहें हैं।
महर्षि दयानन्द जी ने अपने ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाशऔर ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में 10 उपनिषदों के अध्ययन को आवश्यक बताया है।
प्रस्तुत संस्करण में 11 उपनिषदों को संकलित किया गया है –
1) ईशोपनिषद् – यह ब्रह्मविद्या का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें ईश्वर की सर्वव्यापकत, भोक्ता का सृष्टि की वस्तुओं पर केवल प्रयोगाधिकार, किसी के धन या स्वत्व नहीं लेना, सभी कर्म कर्तव्य कर्म समझ कर करना और अन्तरात्मा के विरूद्ध कार्य न करने का उपदेश दिया गया है।
2) केनोपनिषद – इस उपनिषद में ब्रह्मज्ञान का क्या अर्थ है? हम ईश्वर को जानते हैं, इसका क्या अर्थ है? आदि कई आध्यात्म विषयक कथन प्रश्नोत्तर शैली में स्पष्ट किया गया है।
3) कठोपनिषद – इस उपनिषद में यम और नचिकेता के आख्यान द्वारा ब्रह्म का उपदेश किया है। यह उपनिषद भाषा, भाव और शिक्षा सभी दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
4) प्रश्नोपनिषद – इस उपनिषद में पिप्लाद मुनि के पास सुकेशादि मुनियों द्वारा किये गये प्रश्नों के उत्तर रूप में प्राण, अपान, ब्रह्म, सूक्ष्म शरीर आदि विषयों का रहस्यात्मक वर्णन है।
5) मुण्ड़कोपनिषद – इस उपनिषद में सत्य पर अत्यधिक बल दिया है। इसमें सृष्टि उत्पत्ति के सिद्धान्त का भी वर्णन है।
6) माण्डूक्योपनिषद – इस उपनिषद में सृष्टि की अवस्था द्वारा परमात्मा का वर्णन किया गया है तथा ईश्वर के निज नाम ओम की विस्तृत व्याख्या की गई है।
7) ऐतरेयोपनिषद – इस उपनिषद में ब्रह्मविद्या की चर्चा है जिसके अन्तर्गत आत्मा किस प्रकार से गर्भ में आता है इसकी भी चर्चा की गई है। सृष्टि उत्पत्ति तथा प्रलयावस्था का इस उपनिषद में वर्णन किया गया है।
? तैत्तिरीयोपनिषद – इस उपनिषद में ब्रह्मविद्या के साथ साथ स्वाध्याय के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला गया है तथा जिन शिक्षाओं का जिज्ञासुओं के लिए जानना आवश्यक था उसका वर्णन किया गया है।
9) छान्दोग्योपनिषद – इस उपनिषद में विभिन्न प्रतीकों के आधार पर ईश्वरोपासना के महत्त्व को समझाया गया है। उपनिषद में उदगीथोपासना के रूप में प्रणव की व्याख्या की गई है। इस उपनिषद में सामगान के महत्त्व तथा उसमें प्रयुक्त स्तोभ का भी वर्णन किया गया है।
10) बृहदारण्यकोपनिषद – यह उपनिषद सभी दसोपनिषदों में सबसे बड़ा है। इसमें ईश्वर के गुण कर्म स्वभाव तथा याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी संवाद के प्रकरण के रूप में जीवात्मा के भी स्वभाव का वर्णन किया है। शाकल्य और याज्ञवल्क्य संवाद में 33 देवताओं के स्वरूपों का वर्णन है। इस उपनिषद में वंश ब्राह्मण के रूप में ऋषियों के वंशों का वर्णन किया हुआ है।
11) श्वेताश्वतरोपनिषद – यह उपनिषद यद्यपि पूर्वोक्त दशोपनिषदों की अपेक्षा पीछे से बनी है किन्तु इस उपनिषद की अधिकता से वेद मन्त्रों के रखने और वेद का आश्रय लेकर ही विषय का स्पष्ट होने से इसकी श्रेष्ठता सिद्ध है। इसमें जीव, प्रकृति और ईश्वर इन तीनों पदार्थों का अनादिपन अन्यों की अपेक्षा अत्यन्त स्पष्टता से किया गया है।
प्रस्तुत संस्करण की विशेषता –
– इस संस्करण में ईशावास्योपनिषद को शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिनीयशाखा के अनुसार वर्णन किया गया है।
– इस संस्करण में शब्दशः अनुवाद के पश्चात् विस्तृत व्याख्या की गई है।
– इस संस्करण में श्लोकों की अनुक्रमणिका अकारादि क्रम से दी गई है।
उपनिषदों के पवित्र सन्देशों को अपने जीवन को पवित्र बनाने का प्रयास करना चाहिये इसी भावना के साथ इस उपनिषद का अवश्य ही अध्ययन करना चाहिये।
उपनिषद् शब्द का एक अर्थ ‘रहस्य‘ भी है।
उपनिषद् अथवा ब्रह्म-विद्या अत्यन्त गूढ़ होने के कारण साधारण विद्याओं की भाँति हस्तगत नहीं हो सकती, इन्हें ‘रहस्य‘ कहा जाता है। इन रहस्यों को उजागर करने वालों में महात्मा नारायण स्वामीजी का नाम उल्लेखनीय है।
उपनिषदों में ब्रह्म और आत्मा की बात इतनी अच्छी प्रकार से समझाई गई है कि सामान्य बुद्धि वाले भी उसका विषय समझ लेते हैं। महात्मा नारायण स्वामीजी ने अनेक स्थानों पर सरल, सुबोध तथा रोचक कथाएँ प्रस्तुत कर इन्हें उपयोगी बना दिया है।
वास्तव में उपनिषदों में विवेचित ब्रह्मविद्या का मूलाधार तो वेद ही हैं। इस सम्बन्ध में महर्षि दयानन्दजी कहते हैं-“वेदों में पराविद्या न होती, तो ‘केन‘ आदि उपनिषदें कहाँ से आतीं ?”
आइए ग्यारह उपनिषदों के माध्यम से मानवीय भारतीय चिन्तन की एक झाँकी लेंं।
स्वाध्याय हेतु विशेष पुस्तक
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