Vedrishi

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वटेश्वरसिद्धांत

Vateshwarsiddhant

850.00

Subject : Rules
Edition : 2019
Publishing Year : 2019
SKU # : 37055-CO00-0H
ISBN : 9788171106561
Packing : HardCover
Pages : 645
Dimensions : 14X22X8
Weight : 826
Binding : HardCover
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वटेश्वरसिद्धान्त के अन्य व्याख्याकार श्री रामस्वरूप शर्मा के अनुसार पंजाब का आनन्दपुर साहिब, वटेश्वराचार्य का स्थान हो सकता है। लेकिन यह सही नहीं है क्योंकि पंजाब के गुरु तेगबहादुर ने इस स्थान को ई. 1664 में खरीदा था तथा वहाँ पर गुरुद्वारा बनाकर इसका नाम आनन्दपुर रखा तथा इससे पहले इसका नाम माखोवल था। श्री शर्मा ने एक बहुत ही अशुद्ध मूल पाण्डु लिपी से बटेश्वरसिद्धान्त की टीका लिखी लेकिन वह सम्पूर्ण ही अनेक त्रुटियों के कारण व्यर्थ है।

आनन्दपुर नाम के भारत के कई राज्यों में कई स्थान हैं। लेकिन उनके अक्षांश 24 अंश अथवा उसके आस पास भी नहीं हैं।

आचार्य का स्थान गुजरात स्थित वड़नगर ही निश्चित रूप से था, इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। इसी वड़नगर का ऐतिहासिक प्राचीन नाम ‘आनन्दपुर’ था जहाँ का नाम आचार्य वटेश्वर ने अपने प्रस्तुत ग्रंथ में लिखा है। वटेश्वरोक्त करणसार ग्रन्थ अब प्राप्त नहीं है लेकिन अलबरूनी ने अपने ग्रन्थों में इसका अनेकत्र संदर्भ दिया है। यह ग्रन्थ

प्रस्तुत ग्रन्थ वटेश्वरसिद्धान्त अब तक प्राप्त भारतीय सिद्धान्त ग्रन्थों में ‘सिद्धान्त

पञ्चाङ्ग-कर्ताओं के लिए उपयोगी था। तत्वविवेक’ के अतिरिक्त विशालतम है; इस के गणिताध्याय में 1326 श्लोक हैं। ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त में भी 1008 श्लोक ही हैं। बटेश्वरसिद्धान्त का गोलाध्याय पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं है। श्री कृ.शं. शुक्ल को इसके प्रथम पाँच अध्याय ही प्राप्त हुए थे जो भी बहुत ही जीर्ण- शीर्ण अवस्था में थे जिनको उन्होंने क्रमशः लगाकर इस ग्रन्थ के गणिताध्याय के साथ लगाये है। श्रीशुक्ला के अनुसार आचार्य के गणिताध्याय तथा गोल, दो अलग-अलग ग्रन्थ हैं। इसी प्रकार लल्लाचार्योक्त शिष्याधीवृद्धिद तथा गोल दो भिन्न ग्रन्थ हैं। इनके व्याख्याकार भास्कर द्वितीय तथा मल्लिकार्जुन सूरी ने इसके गोल भाग की व्याख्या नहीं की थी।

प्रस्तुत ग्रंथ ब्रह्मपक्षीय है तथा सूर्योदय कालीन दिवसारम्भ को इसमें ग्रहण किया है। आचार्य ने ग्रन्थ के आरम्भ से लेकर अन्यत्र भी अनके स्थानों पर ‘ब्रह्म’ का नाम कहा है। आचार्य ने प्रस्तुत ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती सभी आचार्यों के द्वारा कथित ग्रन्थों से अनेक विषय तथा विधियाँ ग्रहण की हैं।

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