मानव-जीवन का लक्ष्य आनन्द के अगाध भण्डार वाले जगदीश तथा मोक्ष की प्राप्ति है। परन्तु आज मनुष्य भौतिकवाद में इतना लीन हो गया है कि वह मानव-जीवन का उद्देश्य ही भूल गया है।
महर्षि दयानन्द जी द्वारा प्रणीत पञ्चमहायज्ञ विधि के अनुसार वैदिक उपासना ही सर्वोत्तम है। इसे दैनिक जीवन का अभिन्न जङ्ग बना कर संसार-यात्रा में चलते-चलते मनुष्य को अभीष्ट लक्ष्य तक पहुँचना है। इस वैदिक उपासना के मुख्य अङ्ग हैं महर्षि द्वारा प्रतिपादित पञ्च महायज्ञ-
१. ब्रह्म यज्ञ (संध्योपासना), २. देव यज्ञ (हवन), ३. पितु यज्ञ, ४. बलिवैश्वदेव-यज्ञ और ५. अतिथि-यज्ञ को दिनचर्या के रूप में करने से मनुष्य का उत्तोत्तर विकास होता है।
वेद मन्त्रों में अगाध ज्ञान भरा हुआ है, जिनका प्रकाशन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। मन्त्रों के उच्चारण का महत्त्व अर्थ-ज्ञान में ही है। मन्त्रों के अर्थ-ज्ञान बिना मन भी स्थिर नहीं होता है। श्रद्धा और रुचि भी नहीं होती है। चिरकाल से यह अनुभव किया जा रहा था कि कोई ऐसी पुस्तक हो, जिसमें कि दैनिक संध्या-यज्ञों के मन्त्रों के अर्थ भी हों और गीत भी। इस अभाव की पूर्ति हेतु यह वैदिक-नित्य कर्म-विधि प्रस्तुत है।
परमात्मा की अपार दया और सहयोगी बन्धुओं की प्रेरणा से प्रस्तुत वैदिक नित्य कर्म-विधि में मन्त्रों के अर्थ लिख कर इस अभाव को दूर करने का प्रयत्न किया गया है। मन्त्रों के सरल अर्थ के साथ-साथ कविता में भी अर्थ दिये गये हैं। ताकि साधक (भक्त-जन) गाकर अधिक रसास्वादन कर सकें। ईश-भक्ति के सुन्दर और मनोहर भजन व गीत भी दिये गये हैं। पूर्णिमा और अमावस्या के मन्त्र भी अर्थ सहित दिये गये हैं।
जन्मदिन, वैवाहिक वर्षगांठ, भवन-शिलान्यास, सगाई, मिलनी, व्यापार प्रतिष्ठान आदि के चालू करने की कोई एक और निश्चित विधि न होने के कारण ऐसे अवसरों पर अनेक बाधायें उपस्थित हो जाती थीं। इस न्यूनता की पूर्ति हेतु हमने सामाजिक पद्धतियों तथा आर्य पर्व पद्धति के महत्व और आवश्यकता का ध्यान रखते हुए अर्थ सहित मन्त्र तया विधि का समावेश किया है। साथ ही अन्त में शुद्धि-संस्कार पद्धति तया ईशोपाख्यान सुक्त आदि प्रकरण देकर पुस्तक को उपयोगी बनाया गया है। हमें पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक बहुत उपयोगी सिद्ध होगी
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