पुस्तक का नाम – वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास (चार भागों में)
लेखक का नाम – पुरुषोत्तम नागेश ओक
वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृति है और इसका प्रभाव एक समय सारे विश्व पर था। इस बात के अनेकों प्रमाण हमें आज भी प्राप्त होते हैं। इनमें से कुछ बातों को हम आसानी से अनुभव कर सकते हैं और कुछ बातों के प्रमाणों के लिए अत्यधिक खोज और श्रम की आवश्यकता है। जिसे हम आसानी से देख सकते हैं वो निम्न है –
जैसे कि सभी मतों और भारत से भी पृथक् स्थानों में विवाह जैसे आदर्श का होना।
स्त्री पुरुषों का कर्णभेदन होना।
ईश्वर को मानना।
पुनर्जन्म और कर्मफल के सिद्धान्तों का अनेकों देशों और धर्मों में प्रचलन।
औषधियों द्वारा रोगों को दूर करना।
युद्ध में तलवार का अनेकों देशों और प्राचीन सभ्यताओं में वर्णन प्राप्त होना।
मनोरंजन के लिए संगीत, नृत्य का प्रयोग करना।
इस प्रकार अनेकों समानताऐं हम आपस में एक-दूसरे देशों में देख सकते हैं। इससे अनुमान होता है कि सभी राष्ट्रों में एक ही संस्कृति विद्यमान थी जो धीरे – धीरे ह्वास को प्राप्त होती गई थी।
यदि हम विश्व की सभी संस्कृतियों का ऐतिहासिक और पुरातात्विक अध्ययन करें तो हमें ज्ञात होता है कि सम्पूर्ण विश्व में मात्र वैदिक संस्कृति और संस्कृत भाषा ही थी। इनमें से तो बोगाजकुई में तो साक्षात् अनेकों वैदिक संस्कृति के प्रमाण मिलें हैं तथा मनु की नाव से समानता प्राप्त कथाएँ कुरान और बाईबिल के अलावा, मिस्र के असुरबेनीपाल के पुस्तकालय से प्राप्त गिलमेश नामक कथा पुस्तक से भी मिली है। इसी तरह के अनेकों प्रमाण पुरुषोत्तम नागेश ओक जी ने अपने जीवनकाल में संकलित किये और उन्हें प्रस्तुत पुस्तक के रुप में हम सबके समक्ष प्रस्तुत किया है।
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